Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व में भोगे हुए भोगों – रति क्रीड़ाओं का स्मरण न करें, (७) गरिष्ठ भोजन न करें, (८) मर्यादा से अधिक भोजन न करें, (९) शरीर का श्रृंगार न करें। ६.६.१७ आहार ४७ दूषण सज्झाय
प्रस्तुत रचना में मुनि के आहार-संबंधी ४७ दोषों का विवेचन किया गया है। कवि ने आगमों में वर्णित इन दोषों का इस प्रकार विवरण दिया - (क) उद्गम के १६ दोष (ख) अपादान (उत्पादन) के १६ दोष (ग) एषणा (ग्रहणैषणा) के १० दोष और (घ) मांडला (ग्रासैषणा) के ५ दोष।
(क) उद्गम के १६ दोष संक्षेप में ये हैं -
(१) आधा कर्म, (२) औद्देशिक, (३) पूर्तिकर्म, (४) मिश्रजात, (५) स्थापना, (६) प्राभृतिका, (७) प्रादुगष्करण, (८) क्रीत, (९) प्रामित्य, (१०) परिवर्त्तित, (११) अभिहित, (१२) उद्भिन्न, (१३) मालापहृत, (१४) आच्छेद्य, (१५) अनिसृष्ट व (१६) अध्यवपूर।
(ख) उत्पादन के १६ दोष संक्षेप में इस प्रकार हैं -
(१) धात्री, (२) दूती, (३) निमित्त, (४) आजीव, (५) वनीपक, (६) चिकित्सा, (७) क्रोध, (८) मान, (९) माया, (१०) लोभ, (११) पूर्व-पश्चात्संस्तव, (१२) विद्या, (१३) मन्त्र, (१४) चूर्ण, (१५) योग एवं (१६) मूलकर्म।
(ग) ग्रहणैषणा के निम्नलिखित १० दोष हैं -
(१) शंकित, (२) म्रक्षित, (३) निक्षिप्त, (४) पिहित, (५) संहृत, (६) दायक, (७) उन्मिश्र, (८) अपरिणत, (९) लिप्त और (१०) छर्दित ।
(घ) ग्रासैषणाके ५ दोष निम्रानुसार हैं - (१) संयोजन, (२) अप्रमाण, (३) अंगार, (४) धूम तथा (५) अकारण।
कवि ने रचना के अन्त में यह भी सूचित किया है कि उपर्युक्त दोषों का उल्लेख भद्रबाहु स्वामी कृत 'पिण्ड-नियुक्ति' में उपलब्ध होता है।
इसका रचना-काल वि० सं० १६९१, दीपावली है और रचना-स्थान खम्भात । कवि ने अपने शिष्य मेघविजय के आग्रहवश इस रचना का निर्माण किया। रचना ५२ पद्यों में निबद्ध है। ६.६.१८ धर्म-महिमा गीतम्
इस गीत में दान-शील-तप-भाव-रूप चतुर्विध धर्म की महिमा का वर्णन किया गया है और यह बताया गया है कि दान के द्वारा श्रेयांस कुमार ने, शील के द्वारा सुभद्रा ने, तप के द्वारा धन्ना अनगार ने और भावना के द्वारा भरत चक्रवर्ती ने अक्षुण्ण यश को प्राप्त किया है।
गीत में ६ पद्य हैं। गीत का रचना-काल अज्ञात है।
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