Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ ६.६.१९ आत्म-प्रमोद गीतम्
प्रस्तुत रचना में मनुष्य-भव की प्राप्ति की दुर्लभता और संसार की नश्वरता का वर्णन है।
रचना ७ गाथाओं में निबद्ध है। रचना-काल अज्ञात है। ६.६.२० मन-सज्झाय
यह गीत ७ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचना-काल अनुल्लिखित है। इस गीत में कवि ने मन को समझने तथा समझाने का प्रयास किया है। इसके लिए उन्होंने अनेक उपमाओं का प्रयोग किया है, जैसे कि
मन तने कई रीते समझावं। सोनुं होवे तो सोगी रे मेलावु, तावणी ताप तपावें।
लई फूंकणी ने फूंकवा बेसु, पाणी जेम पिगलावू॥ गीत के अन्त में मन की चंचलता का वर्णन करते हुए कवि ने ज्ञान-ध्यान से इसे पहचानने और संयम द्वारा उस पर विजय प्राप्त करने का निर्देश किया है। ६.६.२१ मन-धोबी गीतम्
प्रस्तुत गीत में कवि ने धोबी को मन रूपी धोती (वस्त्र) को धोने का निर्देश दिया है -
धोबीड़ा तूं धोजे रे मन केरा धोतिया, मत राखे मैल लगार। इण मइले जग मैलो कर्यउरे, विण धोया तूं मत राखे लगार ।।
मन रूपी धोती को तपादि के नीर से और आलोचना की साबुन से स्वच्छ करने का उल्लेख किया है। गीत ६ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचना-काल अज्ञात है। ६.६.२२ माया-निवारण सज्झाय
प्रस्तुत रचना में ७ गाथाएँ हैं। इसका रचना-समय अनुपलब्ध है। इसमें माया के कारण होने वाली कठिनाइयों का उल्लेख किया गया है। कवि ने लिखा है -
माया कारण देस देसान्तर, अटवी वन मां जावै रे।
प्रवहण बइसी धीर द्विपान्तर, सायर मांझपावै रे॥
कवि ने लिखा है कि शिवभूति जैसे सत्यवादी भी माया के कारण दुर्गति को प्राप्त हुए। अत: माया से सदैव निवृत्त रहना चाहिए और उस पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। ६.६.२३ स्वार्थ-गीतम्
व्यक्तियों का प्रत्येक कार्य संसार में आसक्त स्वार्थ से प्रेरित होता है - यही इस गीत का प्रतिपाद्य विषय है। गीत में पद्य ६ हैं। इसका रचना-काल अप्राप्य है।
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