Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व जब रुक्मिणी को उक्त घटना की जानकारी मिली, तो उसने एक योगिनी को उससे बदला लेने के लिए भेजा। उसने एक मनुष्य की हत्या कर उसका मांस ऋषिदत्ता के पास रख दिया और रक्त से उसका मुँह लिप्त कर दिया। राजा ने ऋषिदत्ता को राक्षसी समझकर मृत्यु-दण्ड की आज्ञा दे दी। ऋषिदत्ता को गर्दभ पर सारे नगर में घुमाया गया। चण्डाल ने उसे मारने के लिए जैसे ही खङ्ग निकाला, वैसे ही वह अचेत होकर गिर पड़ी। चण्डाल ने उसे मृत समझकर छोड़ दिया।
ऋषिदत्ता सचेत होने पर अपने पिता के गृह चली गई। ऋषिदत्ता के आग्रह पर तापस-पिता ने औषधियों के प्रभाव से उसे पुरुष बना दिया। वह ऋषिदत्ता तापस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
राजा कनकरथ रुक्मिणी से विवाह करने के लिए पुनः रवाना हुआ। मार्ग में राजा तापस के आश्रम में गया और ऋषिदत्त के प्रति स्नेह उद्दीप्त हो जाने से उसने उसे साथ ले लिया। राजा रुक्मिणी से विवाह कर वापस लौट आया।
एक दिन रुक्मिणी को अपने पूर्वकृत कार्य के लिए आत्म-ग्लानि हई। उसने पश्चाताप करते हुए राजा को ऋषिदत्ता के साथ घटित की गई बात कही। राजा भी पश्चाताप की अग्नि में झुलसने लगा। उसने प्रण किया कि यदि ऋषिदत्ता उसे न मिली, तो मैं आत्महत्या कर लूँगा। राजा ने चिता जलवायी और उसमें प्रवेश करने लगा। उपर्युक्त अवसर समझकर तापस ने ऋषिदत्ता को पुनः स्त्री रूप में कर दिया। तापस ने राजा को कहा कि तुम्हारा मित्र ऋषिदत्त ही तुम्हारी पत्नी ऋषिदत्ता है।
अन्तिम जीवन में ऋषिदत्ता ने दीक्षा ग्रहण की, केवलज्ञान पाया और मुक्तात्मा बनी।
इस गीत में वर्णित रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी से भिन्न प्रतीत होती है। प्रस्तुत गीत का रचना-काल अनुपलब्ध है। ६.४.२ श्री नर्मदासुन्दरी सती गीतम्
इस गीत में कविवर लिखते हैं कि नर्मदासुन्दरी दृढ़ शीलवती थी। एक बार वह अपने पति के साथ समुद्रमार्ग से कहीं जा रही थी। मार्ग में नर्मदा ने अपने पति को गीतनृत्य के रहस्य-भरे लक्षण और उसके अंग बताए। पति को पत्नी पर संशय उत्पन्न हुआ। उसने राक्षस-द्वीप पर अपनी पत्नी को छोड़ दिया। नर्मदा ने अपने सतीत्व-रक्षण के लिए अनेक कष्ट सहे । वेश्या, राजा आदि अनेक के जाल में वह फँसी, पागल की तरह गलीगली में भटकी, परन्तु अपने पातिव्रत्य को सुरक्षित रखा। अन्त में भरुयच्छवासी श्रावक जिनदास ने उसे उसके पीहर पहुँचा दिया।
___ एक दिन नर्मदा ने प्रतिबद्ध होकर संयममार्ग ग्रहण कर लिया। महान् तप करते हुए उसने अवधिज्ञान उपार्जित किया। नर्मदा ने अपने पति को स्वर-लक्षण ज्ञान का भेद
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