Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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पद्य ५
समयसुन्दर की रचनाएँ ६.४.८ श्री राजुल-रहनेमि गीतम्
'श्री राजुल-रहनेमि गीतम्' का रचना-स्थल और रचना-काल, दोनों ही अज्ञात हैं। इसमें ८ गाथाएँ है। रचना के कथानक का मूल उद्गम-स्रोत 'उत्तराध्ययन सूत्र' का २२वां रहनेमिज' नामक अध्याय है। प्रस्तुत रचना में पथभ्रष्ट होते हुए रथनेमि को राजुल के द्वारा दिया गया उपदेश है।
सतियों से संबंधित उपर्युक्त सभी गीत भाषा में निबद्ध हैं। इनके अतिरिक्त कतिपय अन्य लघु गीत भी प्राप्त होते हैं - ६.४.९ श्री चुलणी भास
पद्य ५ (चतुर्थ पद्य की द्वितीय पंक्ति तथा पंचम पद्य की प्रथम पंक्ति अप्राप्त) ६.४.१० श्री मृगावती सती गीतम्
पद्य ४ ६.४.११ श्री राजुल-रहनेमि गीतम्
पद्य २ ६.४.१२ श्री राजुल-रहनेमि गीतम्
पद्य ५ ६.४.१३ श्री राजुल-रहनेमि गीतम्
(पंचम पद्य का अंतिम पाद अपूर्ण) ६.४.१४ श्री सुभद्रा सती गीतम्
पद्य ५ ६.४.१५ श्री द्रौपदी सतो भास ६.५ गुरु-गीत
कविवर्य समयसुन्दर का हृदय अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धाभिभूत था। उनकी गुरु-परम्परा में सभागत आचार्यों का परिचय हमने प्रथम अध्याय में दिया है। कवि ने अपने गच्छ के आचार्यों और गुरुजनों के चरणों में स्तवन रूप श्रद्धा के फूल चढ़ाये हैं।
यहाँ हम उनके गुरुओं से संबंधित गीतों का परिचय दे रहे हैं - ६.५.१ संस्कृत में निबद्ध गुरु-गीत ६.५.१.१ दादा श्री जिनकुशलसूरिगुरोष्टकम्
प्रस्तुत रचना कवि के गुरु-गीतों में प्रख्यात है। इसमें युगप्रधान आचार्य श्री जिनकुशलसूरि के अतिशयों अर्थात् अलौकिक शक्तियों का परिचय देते हुए उनके प्रति श्रद्धा प्रकट की है।
गीत में लिखित 'शशधरस्मरबाणरसक्षति प्रतिमविक्रम भूपति संवति' - पंक्ति से स्पष्ट है कि इसकी रचना वि० सं० १६५१ में हुई थी। गीत में ९ पद हैं। ६.५.१.२ श्री जिनसिंहसूरि पदोत्सव-काव्य
प्रस्तुत काव्य में कुल ७० पद्य हैं। इसमें कालिदास के रघुवंश के तृतीय सर्ग के सभी पद्यों के चतुर्थ पाद को लेकर कवि ने अन्य तीन पादों की पूर्ति करते हुए ग्रन्थ का निर्माण किया है।
पद्य ५
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