Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व निकाल दिया। अंजना ने वन में पुत्र का प्रसव किया, जो आगे चलकर हनुमान के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अंजना के मामा प्रतिसूर्य उसे अपने नगर में ले गया।
पवनंजय को युद्ध से लौटने पर जब सारी स्थिति ज्ञात हुई, तो वह चिता बना कर आत्महत्या करने लगा; लेकिन पवनंजय का मित्र अंजना को ले गया। चारों ओर आनन्द का सागर उमड़ पड़ा। अन्त में दोनों ने संयम अंगीकार कर स्वर्गारोहण किया, भविष्य में मुक्त होंगे।
गीत में ११ पद्य हैं। इसका रचना-काल अनुपलब्ध है । ६.४.६ मरुदेवी माता गीतम्
प्रस्तृत कृति १४ गाथाओं में लिखित है। रचना में कवि ने लिखा है कि मरुदेवी आद्य तीर्थङ्कर ऋषभनाथ की माता थी। ऋषभनाथ के प्रव्रजित होने के पश्चात् दीर्घकाल तक माता को पुत्र का दर्शन नहीं हुआ। वह पुत्र - अनुराग में राजा भरत को अनेक बार उपालम्भ देती, जिसका कवि ने ७ गाथाओं में मनोहर चित्रण किया है। ऋषभनाथ को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद वे विचरण करते हुए जब अयोध्या पधारे, तो माता उन्हें उलाहना देने गई। दूर से ही जब उसने समवसरण में पुत्र को चौंतीस अतिशयों से युक्त देखा तो उसके विचार बदल गये । उसका पुत्र - राग और पुत्र का वीतराग-भाव अद्भुत था। उसने अपने राग को धिक्कारा । क्षपक - श्रेणी का अवलम्बन कर शुक्लध्यान में आरूढ़ हुई, केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और मरुदेवी हाथी पर बैठे हुए ही सिद्ध हो गई। प्रस्तुत गीत का निर्माण स्थल तथा समय अनवगत है।
६.४.७ दवदन्ती गीतम्
नल-दवदन्ती कथा को लेकर विपुल साहित्य रचा गया है । समयसुन्दर ने भी इस कथा पर एक स्वतन्त्र रास निर्मित किया है, जिसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। प्रस्तुत रचना में दवदन्ती की विरह वेदना का वर्णन है । नल, दवदन्ती को जंगल में अकेली सोयी छोड़कर चला जाता है । दवदन्ती विरह के कारण हुई अपनी दीन-दशा को नल तक पहुँचाने के लिए चन्द्रमा के निवेदन करती है, जो कि हृदयस्पर्शी है । दवदन्ती यहाँ तक कह उठती है कि
अज्ञात हैं
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हो दृष्टान्त थारउ नल दाखिस्यइ रे, दा० रे हो कवियण केरी रे कोड़ी।
हो पुरुष कूड़ा घणुं कपटिया रे, हो क० रे,
हो खरी लगड़ी तई खोड़ी ॥
आलोच्य रचना ११ गाथाओं में बनायी गयी है। रचना स्थन एवं समय, दोनों
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