Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ ६.३.११ श्री जम्बूस्वामी गीतम्
'श्री जम्बूस्वामी गीतम्' रचना १२-१३ कड़ियों में निबद्ध है। इसकी विषयवस्तु इस प्रकार है -
राजगृह नगर में सेठ ऋषभदत्त के पुत्र जम्बू ने एक बार भगवान् महावीर की आर्ष-वाणी सुनी और ब्रह्मचर्य-व्रत की प्रतिज्ञा ग्रहण कर ली। माता धारणी ने उनका ८ कन्याओं से विवाह कर दिया। उन्होंने अपनी पत्नियों को पूरी रात्रि उपदेश दिया। वे भी दीक्षित होने को तैयार हो गईं। रात में चौर्य-कर्म करने आए प्रभव आदि ५०० चोर भी जम्बू की उपदेशप्रद बातें सुनकर प्रतिबोधित हुए। अन्त में जम्बू के साथ उसकी ८ पत्नियाँ, पत्नियों के पिता-माता, उसके स्वयं के पिता-माता और प्रभव आदि ५०० चोरों ने अर्थात् ५२८ व्यक्तियों ने सामूहिक दीक्षा ली। जम्बू ने साधना करके केवलज्ञान प्राप्त किया तथा सिद्ध-गति को प्राप्त हुए।
इस रचना का रचना-काल ज्ञात नहीं हो पाया है। ६.३.१२ श्री चिलातीपुत्र गीतम्
कवि ने प्रस्तुत गीत में लिखा है कि सेठ धन्ना का सेवक चिलातीपुत्र उसकी पुत्री के प्रति आसक्त हो गया। सेठ ने उसे निकाल दिया। वह संयोगवश ५०० चोरों का स्वामी बन गया। एक दिन उसने सेठ के घर पर डाका डाला और सुषमा को उठा ले गया। सेठ ने उसका पीछा किया। उसने सुषमा को मार डाला। सुषमा का कटा हुआ सिर लेकर वह एक मुनि के समीप पहुँचा। उनका उपशम, विवेक, संवर का उपदेश सुना। उसने वैराग्य प्राप्त किया। मृत्यु के पश्चात् आठवें देवलोक में उत्पन्न हुआ।
प्रस्तुत गीत में ६ कड़ियाँ हैं। इसका रचना-काल अनिर्दिष्ट है। ६.३.१३ श्री उदयन राजर्षि गीतम्
प्रस्तुत रचना का रचना-समय अनुल्लेखित है। इसकी लीम्बडी और अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर वाली हस्तलिखित प्रतियों में से लीम्बड़ीवाली प्रति में एक गाथा अधिक है। उसमें इसकी गाथा संख्या २१ है। रचना ३ ढालों में निबद्ध है।
प्रस्तुत गीत में यह उल्लिखित है कि पाटण-नरेश उदयन के मन में एक बार अभिलाषा उत्पन्न हुई कि यदि मेरी नगरी में भगवान् महावीर आ जायें, तो मेरी नगरी धन्य हो जाएगी। भगवान् वहाँ गये। उनका उपदेश सुनकर राजा विरक्त हो गया। राज्य संचालन में कर्म-बंधन अधिक होते हैं - यह सोचकर राजा ने अपने पुत्र अभीचकुमार को राज्यभार न देकर अपने भागिनेय केशी को दिया। राजा ने प्रव्रज्या धारण कर कठिन तपस्या की। वे व्याधिग्रस्त हो गये। औषधोपचार कराने हेतु वे पाटण आए। केशी राजा ने यह विचारकर मुनि को नगर में प्रवेश करने से रुकवा दिया कि ये मुझसे राज्य छीनने आए हैं। अन्त में एक कुम्हार ने मुनि को प्रश्रय दिया। केशी ने मुनि को औषधि में विष
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