Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व में आहार लेने गया। आकस्मिक, एक क्रौंच पक्षी स्वर्णकार के स्वर्ण-जंवार को जवारअन्न समझकर खा गया। स्वर्णकार को मुनि पर संदेह हुआ और क्रोधित होकर उसने उनके सिर पर भीगी चमड़ी की पट्टी बान्ध दी। पट्टी सूखने पर मुनि को अत्यधिक वेदना हुई। रहस्य को बता देने पर क्रौंच पक्षी को मार डाला जावेगा – यह विचारकर वे मौन रहे और समभाव से उस पीड़ा को सहन की। अन्ततः मुनि ने केवलज्ञान अर्जित किया
और मुक्त हुए। इसमें ७ गाथाएँ हैं। इसका रचना-काल अनुल्लेखित है। ६.३.८ श्री मेघरथ (शांतिनाथ दसम भव) राजा गीतम्
प्रस्तुत गीत २१ गाथाओं में आबद्ध है। गीत का रचना-काल अज्ञात है। इस गीत में तीर्थङ्कर शान्तिनाथ का पूर्व भव अर्थात् मेघरथ का जीवनवृत्त वर्णित है। गीत के प्रणयन का उद्देश्य दया का माहात्म्य प्रस्तुत करना है। कवि समयसुन्दर दया की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि -
दया थकी नव निधि हुवइ, दया ए सुख नी खाण रूड़ा राजा।
भव अनन्त नी ए सगी, दया तो माता जाण रूड़ा राजा ।। ६.३.९ श्री भवदत्त-नागिला गीतम्
प्रस्तुत रचना में कविवर लिखते हैं कि भवदत्त मुनि अपने गार्हस्थिक भाई भवदेश को उपदेश देने के लिए उनके घर गये। उन्होंने भाई को दीक्षित होने का उपदेश दिया। नवविवाहित भवदेव, भाई के उपदेश को लज्जावश अस्वीकार न कर सका। उसने दीक्षा तो ले ली, लेकिन उसके मन में अपनी पत्नी नागिला का ही ध्यान रहता था। अन्त में वे अपनी पत्नी को पुनः प्राप्त करने के लिए घर गये, परन्तु नागिला ने वमित वस्तु को पुनः न ग्रहण करने के संबंध में भवदेव को समझाया। मुनि पुनः विरक्त हो गये और साधना करके देवगति प्राप्त की।
यह रचना ८ कड़ियों में निबद्ध है। इसका रचना-समय अनिर्दिष्ट है। ६.३.१० श्री मृगापुत्र गीतम्
प्रस्तुत रचना में मृगापुत्र श्रमण की स्तुति की गई है। मृगापुत्र सुग्रीव नगर में रहता था। उसके पिता का नाम बलभद्र था और उसकी माता का नाम मृगावती। एक बार मृगापुत्र ने महल के गवाक्ष से एक मुनि को द्रष्टव्य किया। इस मुनिवेश ने उसके जीवन को बदल दिया। उसने अपने माता-पिता से साधु बनने की आज्ञा मांगी। माता-पिता पुत्र को संयम से विमुख करने लगे, जबकि पुत्र संयम ग्रहण करने का आग्रह कर रहा था। अन्त में उन्होंने पुत्र को दीक्षा की अनुमति दे दी। मृगापुत्र मुनि बने और परमसाधना के बाद उन्होंने मुक्ति प्राप्त की। कवि ने प्रस्तुत रचना की विषय-वस्तु का आधार 'उत्तराध्ययन सूत्र' बताया है। रचना में ७ गाथाएँ हैं । रचना-काल अनुल्लेखित है।
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