Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
चन्द्र कलंकी समुद्र जल खारउ, सुरज ताप न सहुँ। जलदाता पणि श्यामवदनघन, मेरु कृपण तउ हुँ किम सदहुँ॥ कमल कोमल पणि नाल कंटक नित, संख कुटिलता बहुँ।
समयसुन्दर कहइ अनन्त तीर्थङ्कर, तुम मइ दोष न लहुँ। ६.१.४.४ विहरमान-वीसी-स्तवनाः
कविवर समयसुन्दर ने 'विहरमान-वीसी-स्तवनाः' कृति का निर्माण हाथी साह नामक श्रावक की इच्छा के कारण किया। इसकी रचना वि० सं० १६९७, माघ कृष्णा ९ को सम्पूर्ण हुई। कवि ने स्वयं निर्देश दिया है कि -
संवत् सोलह सइंत्राणु, माह वदि नवमी वखाणुं। अहमदावादि मझारि, श्री खरतरगच्छ सार । श्री जिनसागरसूरि, प्रतापइ तेज पडूरि।
हाथी साह नी हुँसे, तीर्थङ्कर स्तव्या वीसइ॥ आलोच्य कृति में विहरमान अर्थात् विद्यमान तीर्थङ्करों की स्तुति की गई है। जैन मान्यतानुसार विहरमान तीर्थङ्कर की स्तुति पृथक्-पृथक् गीत में की है। वे निम्नलिखित हैं -
१. सीमन्धर, २. युगमन्धर, ३. बाहु, ४. सुबाहु, ५. सुजात, ६. स्वयंप्रभ, ७. ऋषभानन, ८. अनन्तवीर्य, ९. सूरिप्रभ, १०.विशाल, ११. वज्रधर, १२. चन्द्रानन, १३. चन्द्रबाहु, १४. भुजंग, १५. ईश्वर, १६. नेमि, १७. वीरसेन, १८. महाभद्र, १९. देवयशा और २०. अजितवीर्य।
इन बीस गीतों के अतिरिक्त इस श्रुति के अन्त में कलश भी दिया है। कवि की भक्ति और समर्पण की भावना का संगम इसमें दृष्टिगत होता है। ६.१.४.५ बीस विहरमान जिन स्तवन
'बीस विहरमान जिन स्तवन' में कोई रचना-संवत नहीं दिया हुआ है। इसमें कवि ने आद्य मंगल करके स्वयं ही रचना के वर्ण्य-विषय को स्पष्ट किया है -
प्रणमिय शारदमाय, समरिये सद्गुरु, धर्मबुद्धि हियड़े धरी ए। विहरमान जिन वीस, थुणिसुं मन थिरे, माय ताय लंछण करी ए॥
इस कृति में उन्होंने प्रत्येक विहरमान का नाम, उनके माता-पिता का नाम एवं उनके लांछन का भी उल्लेख किया है।
उक्त रचना ५ ढालों में पूर्ण हुई है। अन्त में 'कलश' रूप में रचना का उपसंहार भी दिया है। ६.१.४.६ श्री सीमन्धरजिन स्तवन
यद्यपि यह स्तवन मात्र १० कड़ियों में निबद्ध है, किन्तु कवि के भक्तिपरक
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