Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व उसका जीर्णोद्धार करने वाले पुरुषों का उल्लेख करते हुए कवि ने स्वयं अपनी ओर से तीर्थ की स्तुति की है। रचना में ६ गाथाएँ हैं। इसका भी रचना-संवत् अज्ञात है। ६.२.३.४ श्री शत्रुञ्जय आदिनाथ भास
प्रस्तुत रचना में समयसुन्दर ने शत्रुजय तीर्थ को पुण्य-पवित्रता का केन्द्र बताते हुए उसे कला और सौन्दर्य से भी युक्त बताया है। कवि ने इस तीर्थ के प्रति अविरल भक्ति-धारा प्रवाहित की है। रचना ९ कड़ियों में गुम्फित है। इसकी रचना वि० सं० १६४४, चैत्र कृष्णा ४, बुधवार को हुई थी। ६.२.३.५ श्री शत्रुञ्जय तीर्थ-भास
जैन मान्यता के अनुसार 'शत्रुञ्जय' तीर्थ पर अनेक आत्माओं ने मुक्ति प्राप्त की है। कवि ने विवेच्य रचना में उक्त तीर्थ ही महत्ता पर प्रकाश डाला है। इस रचना के निर्माण के दिन कवि ने स्वयं इस तीर्थ की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त किया। यह यात्रा उन्हें संघपति सोमजी ने करवाई थी। अतः कवि ने उनकी भारी अनुमोदना की है।
यह रचना ११ गाथाओं में निबद्ध है। इसकी रचना वि० सं० १६४४, चैत्र कृष्ण पक्ष में हुई थी। ६.२.३.६ श्री शत्रुञ्जय आदिनाथ-भास
___जैन धर्म में 'शत्रुञ्जय' शाश्वत तीर्थ माना जाता है। 'शत्रुञ्जय आदिनाथ-भास' रचना में इस तीर्थ की यात्रा करते हुए कवि ने इसके प्रति अगाध श्रद्धा व्यक्त की है। उन्होंने इस रचना में उक्त तीर्थ-स्थल की तत्कालीन लगभग सकल परिस्थितियों का क्रमपूर्वक निर्देश किया है। अत: यह रचना ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। रचना में ९ चतुष्पद हैं। इसका निर्माण वि० सं० १६५८, चैत्री-पूर्णिमा को पूर्ण हुआ। ६.२.३.७ आलोयणागर्भित शत्रुजयमण्डन-आदिनाथ स्तवन
प्रस्तुत स्तवन की रचना ज्ञात-अज्ञातवश हुए पापों की आलोचना करने के उद्देश्य से हुई है। ऐसी मान्यता है कि शत्रुञ्जय-तीर्थ जाकर अपने पापों की आलोचना करने से आत्मा पापमल से मुक्त हो जाता है या उसके पाप क्षीण हो जाते हैं। कवि ने भी इस तीर्थ की यात्रा करके अपने पापपंक को आलोचना की गंगा से प्रक्षालित किया था। रचना में ३२ गाथाएँ हैं। रचना के अन्त में 'कलश' द्वारा रचना का उपसंहार किया गया
यद्यपि कवि ने विश्लेष्य कृति का रचना-संवत् नहीं दिया है, किन्तु कवि की अन्य कृतियों से विदित होता है कि कवि वि० सं० १६४४ तथा वि० सं० १६५८ में शत्रुञ्जय गये थे। अत: इन्हीं में से किसी एक संवत् में प्रस्तुत रचना का प्रणयन हुआ होगा। ६.२.३.८ श्री आबू तीर्थ स्तवन
'आबू तीर्थ स्तवन' में समयसुन्दर ने अपनी भक्ति-भावना अभिव्यक्त करने के
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