Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व इसका रचना-काल वि० सं० १६८० तथा रचना-स्थल जैसलमेर है।
इसमें कवि ने जैसलमेर के गणधरवसही मुखमण्डन जिनालय के मूलनायक आदिनाथ प्रभु की स्तुति की है। गीत में कवि ने यह भी निर्देश दिया है कि इस मंदिर के निर्माण में धरमसी, जिनदत्त, देवसी और भीमसी- इन चारों का आर्थिक सहयोग था। जिनचन्द्रसूरि ने वि० सं० १५३६, फाल्गुन शुक्ला ५ को.इस जिनालय की प्रतिष्ठा करवाई थी। इस मंदिर की कलाकृति प्रशंसनीय है। कायोत्सर्ग में खड़ी भरत-बाहुबलि की मर्ति, गजसवार मरुदेवी माता की मूर्ति, शिखर, मण्डप, बिम्बावली, समवशरण इत्यादि दर्शनीय कलाकृतियाँ हैं। ६.२.३.१४ सेत्रावा-मण्डन श्री आदिनाथ जिन स्तवनम्
इस स्तवन की रचना सेत्रावापुर में हुई थी, लेकिन रचना-काल का उल्लेख कवि ने नहीं किया है। इस गीत में कवि ने भाव-विभोर होकर आदि तीर्थंकर आदिनाथ की स्तुति की है। कविवर प्रभु को ही अपना सर्वस्थ बताते हैं -
तूं गति तूं मति तूं धणी, तूं भवतारण हार।
तूं त्रिभुवनपति तूं गुरु, तूं मुझ प्राण-आधार॥ कवि समयसुन्दर ने प्रभु-प्रतिमा के शारीरिक लावण्य का आलंकारिक चित्रण प्रस्तुत किया है -
प्रतिमा नो मुख चन्द्रमा, लोचन अमिय कचोल। दीप सिखा जिसी नासिका, कंचण द्रपण कचोल॥ कुंद कली रदनावली, अद्भुत अधर प्रवाल।
सोवन देह सुहामणी, निर्मल शशिदल भाल॥ कवि ने यह भी उल्लेख किया है कि सेत्रावा में वि० सं० १६९५, फाल्गुन शुक्ला, रविवार को भूमि से अनेक प्रतिमाएँ प्रकट हुईं, जिनमें तीर्थङ्कर ऋषभ, शीतल, वासुपूज्य, शान्ति और महावीर की प्रतिमाएं आकर्षक एवं शोभायमान थीं।
गीत १६ पद्यों में आबद्ध है। गीतान्त में कलश' भी है। ६.२.३.१५ पाल्हणपुर-मण्डन ४४ द्वयर्थरागगर्भित चन्द्रप्रभजिन स्तवनम्
प्रस्तुत स्तवन में ४४ रागों का नामोल्लेख इस प्रकार किया गया है कि वे पदानुकूल अन्य अर्थ भी ध्वनित करते हैं। इससे कवि की कवित्व-शक्ति भी उजागर होती है। गीत में तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभस्वामी की स्तुति की गई है। गीत में १२ पद्य हैं। इसका रचना-काल सं० १६७१, भाद्रप्रद शुक्ला १२ है और रचना-स्थल पाल्हणपुर है। ६.२.३.१६ अमरसरमण्डन श्री शीतलनाथ वृहत्स्तवनम्
इस गीत में कवि ने शीतलनाथ प्रभु से विनती की है कि वह उसके हृदय की पुकार को ध्यानपूर्वक सुने। कवि ने लिखा है कि संसार-सागर में परिभ्रमण करता हुआ
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