Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ ६.१.४.४६ श्री सामान्य जिन गीतम्
पद्य २ ६.१.४.४७ श्री सामान्य जिन विज्ञप्ति गीतम्
पद्य ३ ६.१.४.४८ श्री सामान्य जिन-आँगी गीतम्
पद्य ४ ६.१.५ सिन्धी भाषा में निबद्ध जिनस्तवन ६.१.५.१ श्री आदि जिन स्तवन
प्रस्तुत गीत में माता मरुदेवी अपने पुत्र ऋषभदेव के हर अंग को शृंगारित करने की बात कहती है -
नयण वे तेंडे कज्जल पावां, मनभावदण्डतिलक लगावां।
रुठड़ा कैदे कोल ऋषभ जी, आउ असाड़ा कोल॥
गीत में शृंगार, वात्सल्य एवं हास्यरस मिश्रित है। गीत १० पद्य में है। इसका रचना-काल अनिर्दिष्ट है। ६.२ तीर्थ एवं तीर्थाधिपतियों से संबंधित रचनाएँ
___ 'तीर्थ' संस्कृत भाषा का शब्द है। इसकी व्युत्पत्ति 'तृ' धातु के साथ 'थक्' प्रत्यय संलग्न करने से हुई है - 'तीर्थते, अनेन वा तृ प्लवन तरणयोः, पातृ तुदि इति थक्। इस प्रकार तीर्थ का अर्थ है, तारने या पार उतारने वाला अथवा तिरने या पार उतारने में सहायक। इसी को और अधिक स्पष्ट करते हुए जिनसेनाचार्य ने लिखा है- 'संसाराब्धे पारस्य तरणे तीर्थमिष्यते'२ - जो संसार-सागर से पार कर दे, वह तीर्थ है।
सभी धर्मों में तीर्थ-स्थानों को विशेष महत्त्व दिया गया है। जैनधर्म की पितृभृमि एवं पुण्यभूमि होने से सम्पूर्ण भारत में जैन-तीर्थ पाये जाते हैं। तीर्थङ्करों के गर्भ, जन्म, दीक्षा, कैवल्य तथा मोक्षभूमि उनके जीवन की घटित घटनाओं के स्थल, साधक-मुनियों की साधना एवं निर्वाण-भूमि, अतिशयवान् जिन-मूत्तियों से विश्रुत हुए स्थान,शतवर्षाधिक प्राचीन जिनालय आदि स्थावर-तीर्थ माने जाते हैं। सिद्धक्षेत्र तथा अतिशयक्षेत्र के भेद से स्थावर-तीर्थ दो प्रकार के होते हैं - महापुरुषों के निर्वाण-स्थल सिद्धक्षेत्र कहलाते हैं और मूर्त्ति-मंदिर अथवा चमत्कारिक घटना-विशेष के कारण महत्त्वपूर्ण बने हुए स्थल अतिशयक्षेत्र कहलाते हैं।
जैन-तीर्थों का सर्वप्रथम उल्लेख मूल प्रतिक्रमण-पाठ के विसीह देडक में, कुन्दकुन्दाचार्य कृत प्राकृत-भक्तियों एवं 'निर्वाण-काण्ड' प्रभृति में प्राप्त होता है। जैन तीर्थ-संबंधी स्वतन्त्र कृतियाँ मध्यकाल में प्रचुर मात्रा में लिखी गईं, जिनमें विविध तीर्थकल्प कृति उल्लेखनीय है। उन सभी कृतियों की सूची डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन ने विविध तीर्थकल्प ग्रन्थ की प्रस्तावना में दी है। १. उद्धृत - विविध तीर्थकल्प, प्रस्तावना, पृष्ठ ७ २. आदिपुराण, उद्धृत - विविध तीर्थकल्प, प्रस्तावना, पृष्ठ ७
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