Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
I
कवि ने इस चौपाई की कथावस्तु के लिए मृगावती के जैन परम्परागत ऐतिहासिक चरित्र को ग्रहण किया है । कवि ने इस चौपाई की रचना तीन खण्डों के अन्तर्गत ३८ ढालों में की है। प्रथम खण्ड में १३ ढालें, द्वितीय खण्ड में १३ ढालें और तृतीय खण्ड में १२ ढालें- कुल ७४५ गाथायें हैं। इस चौपाई में एक ढाल सिन्धी भाषा में रचित है और शेष समस्त ढालें प्राचीन हिन्दी में ।
१५८
प्रथम खण्ड में कवि ने सरस्वती एवं सद्गुरु को नमस्कार करते हुए शील का माहात्म्य प्रस्तुत किया है । तत्पश्चात् सती मृगावती का चरित्र प्रारम्भ होता है। सती मृगावती वत्स देश में कौशाम्बी नगर के राजा शतानीक की पटरानी थी । राजा न्यायप्रिय और शूरवीर था, तो उसकी रानी भी शीलवती, गुणवती और अनन्य सुन्दरी थी। राजा का मन्त्री जुगन्धर स्वामिभक्त एवं राजकार्यों में प्रवीण था ।
रानी मृगावती वैशालीपति चेडी महाराज की पुत्री थी। एक बार वह गर्भवती हुई। उसे रुधिर से परिपूर्ण वापी में स्नान करने का दोहद उत्पन्न हुआ । मन्त्री ने दोहदपूर्ति हेतु पानी में कुसुम्बा घुलवा दिया। मृगावती उस रक्तवर्णी पानी में स्नान करने लगी। स्नान से निवृत्त हो, रानी जैसे ही वापी से बाहर आयी, उसी समय एक भारण्ड पक्षी उसे लाल मांस-पिण्ड समझ कर पञ्जों से पकड़कर उड़ गया। सर्वत्र रानी की खोज की गई, परन्तु चौदह वर्ष तक रानी का कोई पता न लगा ।
रत्न
एक दिन राजा शतानीक के पास दो व्यक्ति आये और उन्होंने राजा को एक -जड़ित नामाङ्कित कङ्कण दिया । राजा ने मृगावती के इस कंकण को पहचान लिया और उसके बारे में उनसे पूछताछ की। वे राजा को कङ्कण के प्राप्ति-स्थान पर ले गये । राजा जंगल में तापसाश्रम में गया। वहाँ उसका अपने पुत्र उदयन और प्रिया रानी मृगावती से मिलन हुआ। प्रमुख तापस विश्वभूति और ब्रह्मभूति से आशीर्वाद प्राप्त कर उत्सवसहित कौशाम्बी में प्रवेश किया। यहाँ मृगावती - चरित्र - चौपाई का पहला खण्ड समाप्त हो जाता है।
द्वितीय खण्ड के प्रारम्भ में कवि ने जिनकुशलसूरि को वन्दन कर कथा का विस्तार किया है । कवि ने लिखा है कि शतानीक और मृगावती सपरिवार धर्मयुक्त सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन एक निपुण वीणा वादक ने अनुपम ढंग से अपनी कला का प्रदर्शन किया, किन्तु उदयन ने उसमें कमियाँ बता दीं। राजा के पूछने पर उदयन ने अपने संगीत - ज्ञान की प्राप्ति का विस्तृत वृत्तान्त बताया और कहा कि यह ज्ञान मुझे अपने पूर्वभव के मित्र महर्द्धिक देव द्वारा प्राप्त हुआ था ।
एक बार सभासदों के परामर्श से राजा ने राजमहल में कलात्मक चित्रण करवाया। एक चित्रकार ने मृगावती के अंगूठे मात्र को देखकर सम्पूर्ण शरीर का चित्र बना दिया । राजा उससे बहुत प्रभावित हुआ, लेकिन जंघा पर चिह्नित तिल को देखकर राजा
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