Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
२०७ संस्कृति के विकास में अपने-अपने समय में सदाचार का बीज-वपन करते हैं और धर्म तथा नीति का उपदेश देते हैं।
तीर्थङ्कर साधना-पथ के निरतिशय प्रकाशस्तम्भ हैं। इनकी स्तुति अथवा भक्ति करने से आत्म-स्वरूप का तथा आत्म-निहित परमात्म-स्थिति का साक्षात्कार होता है। तीर्थङ्करों की स्तुति या पूजा दो रूप में की जाती है - १. द्रव्य एवं २. भाव। पवित्र वस्तुओं के द्वारा तीर्थङ्कर-बिम्ब की पूजा करना द्रव्य-पूजा है और तीर्थङ्करों के महान् गुणों का कीर्तन करना भाव-पूजा है। श्रमणोपासक द्रव्य-पूजा करते हैं और श्रमण भावपूजा। कविप्रवर समयसुन्दर एक श्रमण थे। अतः उन्होंने भाव-पूजा अथवा भाव-स्तुति निमित्त तीर्थङ्करों की ललित गीतों में स्तुतियाँ की हैं। कवि के तीर्थङ्करों के स्तुतिपरक उपलब्ध स्तवनों, गीतों, भासों, स्तोत्रों आदि को आवश्यक विवरण के साथ यहाँ यथाक्रम दिया जा रहा है - ६.१.१ संस्कृत भाषा में निबद्ध रचनाएँ ६.१.१.१ ऋषभ-भक्तामर-स्तोत्रम्
मानतुङ्गाचार्य रचित 'भक्तामर-स्तोत्र' के मौलिक ४४ पद्यों के अन्तिम चरणों को लेकर कवि ने प्रथम तीन चरणों की स्वतः पूर्ति करते हुए विवेच्य स्तोत्र की रचना की है। कवि ने अपने भावों को मानतुङ्गाचार्य के भावों के साथ इस प्रकार से परस्पर संयोजित किया है कि इस स्तोत्र में कलापक्ष एवं भावपक्ष दोनों का चित्ताकर्षक संगम परिलक्षित होता है
चिंतामणिर्मणिषु धेनुषु कामधेनुर्गङ्गानदीषु नलिनेषु च पुण्डरीके। कल्पद्रुमस्तरुषु देव! यथा तथात्र, व्यक्तं त्वमेव भगवन्पुरुषोत्तमोसि॥
अतः यह रचना 'समस्या पूर्ति' अथवा 'पाद-पूर्ति' रूप रचना है। इसमें कुल ४५ पद्य हैं। इनमें अन्तिम पद्य में कवि ने उपसंहार मात्र किया है, शेष पद्य स्तोत्र रूप हैं।
प्रस्तुत स्तोत्र में कवि ने प्रथम जिनेन्द्र ऋषभदेव की स्तुति करते हुए यह वर्णन किया है कि उनकी कृपा से ही अत्यन्त साधारण व्यक्ति भी इस भव-सागर से मुक्त हो जाता है। अतएव वे अन्य सभी देवों में श्रेष्ठ हैं। इनके ध्यान से मानव की लौकिक और पारलौकिक सभी कामनाएँ सिद्ध हो जाती हैं। इसलिए जिनकी भक्ति इनमें हो जाती है, वे कभी किसी दूसरे देवताओं में अनुरक्त नहीं होते।
स्तोत्र का रचना-स्थल व रचना-काल निर्दिष्ट नहीं है। ६.१.१.२ नानाविध श्लेषमयं श्री आदिनाथस्तोत्रम्
प्रस्तुत रचना में १४ पद्य हैं। पद्यों में प्रयुक्त छन्दों में एकरूपता नहीं है। इसमें इन्द्रवज्रा, उपजाति, मालिनी, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्बित शार्दुलनिक्रीडित आदि छन्द २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, ऋषभ-भक्तामर-स्तोत्रम् (२५)
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