Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रयोग किये गये हैं।
इस रचना में श्लेष-अलंकार की ललित छटा छलकती हुई दृष्टिगत होती है। इसमें तीर्थङ्कर आदिनाथ के गुणों एवं उनके माहात्म्य का वर्णन किया गया है। स्तोत्र का रचना-काल अनिर्दिष्ट है। ६.१.१.३ श्री पार्श्वनाथ लघु स्तवन
इस स्तवन में कवि ने श्लेष के आधार पर व्याकरण-शास्त्र की रीति से भगवान् पार्श्वनाथ के स्वभाव की विलक्षणता बतलाई है। जहाँ एक ओर व्याकरण-शास्त्र विग्रहप्रदर्शनपूर्वक प्रकृति (मूल शब्द) के साथ प्रत्यय (सुप्, तिङ् आदि) को जोड़कर शब्दों की सिद्धि करता है, वहीं दूसरी ओर भगवान् पार्श्वनाथ ने प्रकृति (जनसामान्य के स्वभाव) के बिना ही 'विग्रह' (शरीर अथवा कलह) की उपेक्षा करते हुए केवल 'प्रत्यय' (अध्यात्म-ज्ञान) से ही 'सिद्धि' (पूर्णता) प्राप्त की है। एक अन्य पद्य में भी कवि ने भगवान् पार्श्व की व्याकरण-शास्त्र से यह विलक्षणता बतलाई है कि व्याकरणशास्त्र 'आदेश' को 'स्थानी' के विघातक होने से शत्रुवत् और 'आगम' को 'स्थानी' का विकासक होने से मित्रवत् मानता है, किन्तु पार्श्वनाथ का 'आदेश' (उपदेश) मित्रवत् है और 'आगम' (आय-परिग्रह) शत्रुवत् है।
इसके अतिरिक्त भी कवि ने श्लेष द्वारा पार्श्वनाथ के विलक्षण स्वभाव का मनोहर वर्णन किया है।
___ स्तवन में ६ पद्य हैं। इसका रचना-काल अज्ञात है। ६.१.१.४ श्री पार्श्वनाथ श्रृंगाटकबन्ध स्तवनम्
इस स्तोत्र में कवि ने भगवान् पार्श्वनाथ के गुणों का माहात्म्य 'शृंगाटक' बन्धमय पद्यों में प्रकट किया है। इसमें शब्दों की आलंकारिक छटा रमणीय है। इसमें १० पद हैं। इसका प्रणयन-काल अज्ञात है। ६.१.१.५ श्री पार्श्वनाथ हारबन्धचलच्छृखला गर्भित स्तोत्रम्
यह रचना ८ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचना-काल अनुपलब्ध है। सभी पद्य 'हारबन्ध' में रचित हैं, किन्तु भाव की दृष्टि से सामान्य हैं। इसमें ललित शब्द-विन्यास करते हुए तीर्थङ्कर पार्श्व की प्रार्थना की गई है। ६.१.१.६ श्री पार्श्वनाथ यमकबद्ध लघु स्तवनम्
इस स्तवन में भगवान् पार्श्वनाथ की महिमा का वर्णन करते हुए कवि ने उन्हें सर्व ऐश्वर्य-सम्पन्न, धर्म-प्रवर्त्तक, वीतराग और मोक्ष-प्रदायक कहा है। इस रचना में कवि ने यमक अलंकार का चमत्कार दिखलाया है। रचना में ८ पद्य हैं। इसका रचनाकाल अनिर्दिष्ट है।
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