Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सकता है। समयसुन्दर की प्रकीर्णक रचनाओं का निम्नलिखित उपशीर्षकों के अन्तर्गत परिचय प्रस्तुत किया जाएगा - ६.१ तीर्थङ्कर-संबंधित रचनाएँ ६.२ तीर्थ एवं तीर्थाधिपतियों से संबंधित रचनाएँ ६.३ मुनियों से संबंधित रचनाएँ ६.४ सतियों से संबंधित रचनाएँ ६.५ गुरु-गीत
६.६ उपदेशपरक रचनाएँ ६.७ विरह-गीत
६.८ अन्य रचनाएँ उपर्युक्त उपशीर्षकान्तर्गत जिन प्रकीर्णक रचनाओं का परिचयात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाएगा, उनमें से अधिकांश रचनाओं की हस्तलिखित प्रतियाँ श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध हैं और सभी रचनाएँ श्री अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित 'समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' नामक ग्रन्थ में प्रकाशित हैं। ६.१ तीर्थङ्कर-संबंधित रचनाएँ
जैनागमों में यह माना गया है कि प्रत्येक अवसर्पिणी' तथा 'उत्सर्पिणी' नामक कालचक्र में चौबीस-चौबीस तीर्थङ्कर होते हैं। तीर्यते भवोदधिरनेन स्मात्, अस्मिन्निति या तीर्थम्, तत्करण शीलः तीर्थङ्करः१ से विदित होता है कि तीर्थ का कर्ता तीर्थङ्कर है
और जिसके द्वारा भव-सागर को पार किया जाय, वह तीर्थ है अर्थात् जिन शासन ही वास्तविक तीर्थ है। वर्तमान अवसर्पिणी काल के तृतीय-चतुर्थ कालखण्ड में हुए २४ तीर्थङ्करों के नाम इस प्रकार हैं -
१. ऋषभ, २. अजित, ३. संभव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पद्मप्रभ, ७. सुपार्श्व, ८. चन्द्रप्रभ, ९. सुविधि, १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२ वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति, १७. कुन्थु, १८. अर, १९. मल्लि, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि, २२. अरिष्टनेमि, २३. पार्श्व तथा २४. वर्धमान (महावीर)२
प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव के लिए आदिब्रह्मा, आदिनाथ, आदीश्वर प्रभृति नाम भी उल्लिखित हुए हैं। अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर को बौद्धागमों में निगंठनातपुत्त भी कहा गया है। यों देखा जाय तो काल की अविछिन्न धारा में न तो ऋषभदेव प्रथम हैं और न महावीर अन्तिम। यह परम्परा तो अनादि अनन्त है - न जाने कितनी चौबीसियाँ हो गयी हैं और आगे होंगी। ये तीर्थङ्कर वीतराग और सर्वज्ञ होते हैं, जो मानवीय सभ्यता एवं १. उद्धृत – विश्व हिन्दी-कोश, भाग-५, पृष्ठ ३८९ २. चतुर्विंशतिस्तव (१-५) ३. (क) आगम और त्रिपिटकः एक अनुशीलन, भाग, पृष्ठ ४०२
(ख) संयुत्तनिकाय : एक अध्ययन, पृष्ठ २६८ से २७१ तक
(ग) जैनिज्म इन बुद्धिस्ट लिटरेचर, पृष्ठ २५ ४. समणसुत्तं, भूमिका, पृष्ठ १२
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