Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व किया। उधर विभीषण ने रावण को युद्ध में न उतरने की समयोचित शिक्षा दी, लेकिन वहाँ से तिरस्कृत होकर सत्यपक्षग्राही विभीषण अपनी तीस अक्षौहिणी सेना लेकर राम की शरण में पहुँचा। उधर भामंडल भी सदलबल आ पहुँचा। असंख्यासंख्य सैनिकों के साथ राम लङ्का पहुँचे। रावण के पास चार हजार अक्षौहिणी सेना तथा राम के पास एक हजार अक्षौहिणी वानरों की सेना थी । परस्पर भारी युद्ध हुआ । (कवि का युद्ध-वर्णन अद्भुत वीर - रसोत्पादक है ।) विषम युद्ध में विशिष्ट शक्ति हेतु लक्ष्मण ने देवाराधना की। फलस्वरूप उन्हें अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हुईं। रावण के असह्य प्रहार से लक्ष्मण मूर्छित हो गए, जिसका राम को अति शोक हुआ, परन्तु विशल्या नामक पुण्यवती नारी को लाकर उसके स्पर्श से लक्ष्मण को सचेत किया गया। उधर रावण ने दैविक शक्ति का संचय करना शुरू किया। उसने अष्टम तप किया। राम के आदेश से अङ्गद आदि वीरों ने रावण को क्षुब्ध करने का प्रयास किया, परन्तु रावण को एकाग्र ध्यान से उसके बहुरूपिणी विद्या सिद्ध हो गई। इसी के साथ 'सीतारामप्रबन्धे रावणयुद्ध, विशल्या कन्या समुद्धृत, लक्ष्मण शक्ति, रावण - समाधारित बहुरूपिणी विद्यादि वर्णनो नाम षष्ठः खण्डः' की इति हो जाती है । सप्तम खण्ड में कवि का कथन है कि रावण सीता पर सिद्ध शक्ति का प्रयोग करने लगा, किन्तु उसे असफलता ही उसे हस्तगत हुई । अन्त में ज्ञान होने पर रावण को अपने कृत कार्य के लिए बड़ा पश्चाताप हुआ; किन्तु लोकलज्जावश उसने पुनः युद्ध किया। कृत संकल्पी रावण की वीरता अद्भुत होते हुए भी अंहकारी रावण का लक्ष्मण द्वारा पतन हो गया और राम विजयी हुए ।
राम और रावण के परिवार ने रावण का शोकयुक्त अन्त्येष्टि संस्कार किया । दूसरे दिन मुनि अप्रमेय के उपदेश से कुम्भकरण, मन्दोदरी आदि अनेक महानुभावों ने प्रव्रज्या धारण कर ली ।
राम के दल का लङ्का में प्रवेश हुआ। राम ने विभीषण को लङ्का का राज्य दिया । राम-लक्ष्मण के साथ सहस्रों विद्याधरों की पुत्रियों का पाणिग्रहण हुआ । नारद मुनि द्वारा अयोध्या का चिन्तातुर समाचार जानकर राम अयोध्या की ओर आकाशमार्ग से बढ़े। अयोध्या में उनके स्वागत का भव्य आयोजन हुआ था । राम का अयोध्या - प्रवेश हुआ। भरत ने वैराग्यवश चारित्र ग्रहण कर लिया और सभी राजाओं के निवेदन पर राम का बलदेव के रूप में और लक्ष्मण का वासुदेव के रूप में अभिषेक हुआ। सीता के वैभव को देखकर उसकी सौतें उससे द्वेष करने लगीं। फलस्वरूप सीता को कलंकित करने का उन्होंने उपक्रम बनाया। सीता द्वारा रावण के पैरों का चित्र बनाकर राम को दिखाया गया, किन्तु सौतों को सफलता नहीं मिली । यहीं पर 'सीतारामप्रबन्धे रावणवध, सीतारामपश्चादानयन, रामलक्ष्मणायोध्याप्रवेश, सीता- कलंक प्रदान वर्णनोनाम सप्तमो खण्डः ' समाप्त हो जाता है।
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