Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ से लिखित है और यति आराधना' साधु की अपेक्षा से। प्रस्तुत कृति के वर्ण्य विषय में जो भिन्नता है, उसे आगे प्रस्तुत किया जा रहा है।
कृतिकार ने विवेचन की सुविधा के लिए 'यति-आराधना' को छ: अधिकारों में विभाजित किया है। वे हैं - १. सम्यक्त्व-शुद्धिः, २. अष्टादश-पाप-स्थानक-परिहारः, ३. चतुरशीतिलक्षजीवयोनिक्षामणम्, ४.संयम-विराधनायामिथ्या-दुष्कृतं दानम्, ५. दुष्कृतगर्दा एवं ६. सुकृत-अनुमोदना।
सम्यक्त्व-शुद्धि नामक प्रथम अधिकार में आहार ग्रहण करने के पश्चात् वीतरागप्रतिमा के समक्ष ईर्यापथिको प्रतिक्रमण, चैत्यवन्दन आदि करके सम्यक्त्व-शुद्धि की विधि या आराधना का वर्णन किया गया है। शेष विषय-वस्तु 'श्रावकाराधना' के प्रथम अधिकार के समान है।
_ 'अष्टादश-पापस्थानक-परिहार' और 'चतुरशीतिजीवयोनिक्षामणम्' नामक द्वितीय एवं तृतीय अधिकार की विषय वस्तु 'श्रावकाराधना' के द्वितीय एवं तृतीय अधिकार के सदृश है।
प्राप्त पाण्डुलिपि में 'संयमविराधनायामिथ्यादुष्कृतदानम्' और 'दुष्कृत-गर्हा' नामक चतुर्थ तथा पंचम अधिकार से संबंधित पत्र त्रुटित एवं परस्पर अति संश्लिष्ट हैं। फिर भी जितना पढ़ा जा सका, उसके आधार पर यह ज्ञात होता है कि इनमें मुनियों की गोचरी (भिक्षा) के ४२ दोष एवं मांडले के पांच दोषों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार गौचरी के कुल ४७ दोषों में से जो दोष लगा हो, उसके निवारण के लिए 'मिच्छामि दुक्कडं' देने का निर्देश किया गया है, अर्थात् वे दुष्कृत मिथ्या हों, इसके लिए क्षमा-याचना करनी चाहिये। इसके अतिरिक्त ज्ञान की विराधना और पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, बारह तप, चरण सत्तरी एवं करण सत्तरी के प्रति हुए दोषों की भी आलोचना करने का निर्देश दिया गया है।
सुकृत अनुमोदना नामक षष्ठ अधिकार में पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, निर्दोष-गोचरी, सविधि, तप, यात्रा, बारह भावना आदि व्रत के पालन की अनुमोदना करने का विधान किया गया है।
इसकी हस्तलिखित प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध हुई है। ४.३.२ साधु-वन्दना
___ जैन संघ में साधु-साध्वियों को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त है। पञ्च परमेष्ठी की वन्दना के अन्तर्गत साधु-साध्वियों की भी वन्दना की जाती है। प्रस्तुत कृति में भी विगत, वर्तमान और भावी साधु साध्वियों की वन्दना की गई है। इसमें कवि ने आगमों में वर्णित ५८३ प्रमुख साधु-साध्वियों के नामों का उल्लेख करते हुए उन्हें श्रद्धापूर्वक वन्दना की है।
कवि ने कृति में भी उल्लेख किया है कि प्रस्तुत कृति की रचना करने की मेरी
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