Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व विपरीत वृद्धदत्त की मान्यता है कि उद्यम के आगे भावी कुछ नहीं। इस संबंध में उसने भी दृष्टान्त सुनाया और यह सिद्ध करने का प्रयत्ल किया कि उद्यम का आश्रय लेकर विधाता के लेख में भी मेख मारी जा सकती है।
वृद्धदत्त अपना कार्य सिद्ध करने के लिए कम्पिला नगरी जाकर व्यवसाय करने लगा। सेठ त्रिविक्रम से उसने घनिष्ठ मित्रता की। चम्पापुरी जाते समय भोजनादि की व्यवस्था हेतु वह पुष्पवती दासी को साथ में ले गया। मार्ग में उसने उसे मरणासन्न कर दिया। उसे मृतक समझकर वृद्धदत्त चम्पापुरी चला गया। उधर पुष्पवती ने मृत्यु के पूर्व एक उत्तम बालक को प्रसव किया। एक पथिक वृद्धा उस बालक को ले गई और वह राजाज्ञा से उसका पालन करने लगी। चम्पक वृक्ष के नीचे बालक मिलने से उसका नाम चम्पक रखा गया। बुद्धिशाली चम्पक तरुणवय में प्रचुर वित्तोपार्जन करके राजमान्य नगर सेठ हो गया।
___ चम्पक एक बार चम्पा नगर गया। वृद्धदत्त ने इसकी शालीनता और सौन्दर्य पर मुग्ध होकर अपनी पुत्री के योग्य वर माना, परन्तु जब उसे उसका परिचय मिला, तो उसके हृदय पर साँप लोटने लगे और उसे देवी-वचनों की सत्यता प्रमाणित होती हुई प्रतीत हुई। तब उसने उसकी पुनः हत्या कराने का षड़यन्त्र रचा। वृद्धदत्त ने उसे भावी भारी व्यवसाय का लोभ देकर एक पत्र के साथ उसे अपने भाई साधुदत्त के पास भेजा। इसमें चम्पक की हत्या करने का निर्देश था।
चम्पक वृद्धदत्त के घर पहुंचा। उसकी पुत्री उसे देखते ही मुग्ध हो गई। उसने दूसरा पत्र लिखा, जिसमें आज ही दोनों का विवाह करने का उल्लेख था। साधुदत्त ने धूमधाम से विवाह कर दिया। इससे वृद्धदत्त जल-भुन गया, परन्तु यह करतूत तिलोत्तमा की है, यह ज्ञात कर चुप्पी साथ ली।
. दो माह बाद वृद्धदत्त ने अपनी पत्नी से चम्पक को विष खिलाने को कहा, जिसे तिलोत्तमा ने सुन लिया। तिलोत्तमा ने अपने पति से कहा कि अपशकुन होने से आप दो महीने तक इस घर का अन्न-जल कुछ भी न खाएँ। चम्पक ने वैसा ही किया। वृद्धदत्त ने अपनी सफलता के लिए दूसरा उपाय किया। कुछ सुभटों को लोभ देकर उसने चम्पक को मार डालने के लिए कहा। सुभटों ने एक रात्रि में चम्पक सेठ के भ्रम से वृद्धदत्त की हत्या कर डाली। भावी प्रबल है। कवि समयसुन्दर कहते हैं -
सहु को लोक कहै छै सरज्यूं, ते बोल केता वांचु रे।
उद्यम छै पणि भावी अधिकुं, समयसुन्दर कहे साचुं रे॥ इस प्रकार चम्पक सेठ स्वतः सारे धन का स्वामी बन गया और क्रमशः वह अरबपति हो गया है।
द्वितीय खण्ड में कवि समयसुन्दर चम्पक सेठ की ऋद्धि का वर्णन करते हैं।
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