Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
१९१ आग्रह से पन्द्रह दिन वहाँ रहकर की थी। कवि ने स्वयं लिखा है -
पाल्हणपुर थी पाँचे कोसे, उत्तर दिसि चांद्रेठ गामो रे। तिहां खरतर श्रावक वसइ, साह नीबउ जसवंत नामो रे॥ तेह नइ आग्रह तिहाँ रह्या, दिन पनरह सीम त्रिठाणुं रे।
तिहाँ कीधी ए चउपइ, संवत् सोल पंचाणु रे ॥१
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि 'गौतम-पृच्छा-चौपाई' की विषय-वस्तु कर्म-विपाक से संबंधित है। किस कर्म के कारण जीव शुभ फल पाता है और किस कर्म के कारण वह अशुभ फल पाता है, यही इस कृति का प्रतिपाद्य विषय है। जैसे -
__ जो जीव नी रक्षा करइ, हीयइ परम दयाल।
वे घणा वरस जीवइ वली, घणा हुयइ बाल ॥२ 'गौतम-पृच्छा-चौपाई' की पाण्डुलिपि अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर से उपलब्ध हुई है। सम्प्रति, यह चौपाई अप्रकाशित है। ४.१.१५ धनदत्त-चौपाई
यह लघु कृति व्यवहार-शुद्धि एवं नैतिक सन्दर्भो से युक्त है। इस चौपाई की रचना कवि समयसुन्दर ने अहमदाबाद में वि० सं० १६९६ के आश्विन मास में की थी। चौपाई में प्राप्त रचनाकाल का निर्देश अधोलिखित है -
संवत् सोल छिन्नू समइ ए, आसू मासि मझारि। __ अमदाबादइ ए कह्यौ ए, धनदत्त नउ अधिकारि॥३
कृति की प्रामाणिकता अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर से प्राप्त हस्तलिखित पाण्डुलिपि के आधार पर स्पष्ट होती है। अहमदाबाद, धोराजी एवं पाटण के शास्त्रभण्डारों में भी इसकी प्रति का अनुसन्धान मिला है। श्रीभंवरलाल नाहटा ने अपनी कृति 'समयसुन्दर-रास-पंचक' में इस चौपाई का सम्पादन भी किया है। 'समयसुन्दर-रासपंचक' का प्रकाशन सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर द्वारा हुआ है।
अमरचन्द्र, माणिक्यसूरि प्रभृति द्वारा लिखित धनदत्त-कथा साहित्य-लोक को प्राप्त है। अमरचन्द्र कृत धनदत्त-कथा सर्वाधिक प्राचीनतम मानी जाती है। समयसुन्दर रचित 'धनदत्त-चौपाई' में ढालें ९ हैं, गाथाएँ १६१ हैं और ग्रन्थाग्रन्थ २१८ श्लोकपरिमाण हैं। इसका कथानक व्यवहार-शुद्धि पर अवलम्बित है। श्रावक का कैसा शुद्ध व्यवहार होना चाहिये, उसे व्यंजित करना ही कृति का उद्देश्य परिलक्षित होता है।
समयसुन्दर तीर्थङ्कर शान्तिनाथ को नमन करके चौपाई का प्रारम्भ करते हैं। १. गौतम-पृच्छा-चौपाई (१.५-६) २. वही (३.२६) ३. धनदत्त-चौपाई (९.७)
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