Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ प्रथम खण्ड के प्रारम्भ में सर्वप्रथम उन्हें नमन किया है। प्रास्ताविक निवेदन के पश्चात् कवि समयसुन्दर कहते हैं कि जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सोरठ देश के अन्तर्गत द्वारिका नामक नगरी में त्रिखण्डपति कृष्ण राज्य करते थे। उसी नगरी में थावच्चा नाम की एक गाथापतिनी गृहस्थ महिला (सार्थवाहिनी) निवास करती थी। उसके एक पुत्र था, जो थावच्चासुत के अभिधेय से पहचाना जाता था। उसने बालवय में विद्याभ्यास किया और क्रमशः बहत्तर कला में प्रवीण हुआ। यौवनावस्था में बत्तीस कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ।
एक बार द्वारिका नगर में भगवान् नेमिनाथ श्रमणसंघ सहित पधारे। तब उनके दर्शनार्थ श्रीकृष्ण और समस्त नागरिक गये, थावच्चासुत भी गया। धर्मवचन सुनकर थावच्चासुत को संयम-रथ पर आरूढ़ होने की अभिलाषा हुई। घर आकर उसने माता से अपना विचार कहा कि मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ। माता को इससे आघात पहुँचा। श्रमणधर्म का पालन करना कितना दुष्कर है – इस विषय में उसने पुत्र को समझाया। यहाँ माता के द्वारा 'दशवैकालिक सूत्र' के आधार पर भी उपदेश दिलवाया गया है -
दीक्षा छइ पुत्र दोहिली, जेहवी खांडा नी धार। ते पुत्र तइ पलिस्यइ नहीं, ते भणी कहुँ वार-वार । सूघु संयम पालतां, एतला बोल निषेध।
दसवैकालिक सूत्र मई, भगवन्त भाख्यउ संवेध ॥ (थावच्चा पुत्र की माता के मुख से दशवैकालिक सूत्र का उल्लेख करवाने में कालव्यतिक्रम का दोष व्यंजित हुआ है, क्योंकि दशवैकालिक की रचना तीर्थङ्कर महावीरस्वामी के बाद हुई है, जबकि थावच्चा का काल अरिहन्त नेमिनाथ स्वामी के काल का है।)
____ माता के बहुत समझाने पर भी पुत्र अपने निर्णय में दृढ़ रहा । अन्ततः माता की सम्मति प्राप्त हो गई।
____थावच्चासुत के साथ अन्य एक हजार पुरुषों ने भी दीक्षा ली। थावच्चासुत का श्रीकृष्ण से सांसारिक संबंध होने के कारण उन्होंने दीक्षा-महोत्सव धूमधामपूर्वक सम्पन्न कराया। दीक्षा लेते समय थावच्चासुत के मस्तक के बाल थावच्चामाता नापी के द्वारा कटा लेती है और उन्हें निर्मल कर स्मृति-चिह्न के रूप में रख लेती है।
समयसुन्दर ने इस प्रसंग को अपनी ओर से जोड़ा है। जिस 'ज्ञाताधर्मकथा' के आधार पर उन्होंने यह कथानक लिया है, उसमें इस प्रसंग का कोई उल्लेख नहीं है कि दीक्षा लेने से पूर्व थावच्चा माता के नापी के द्वारा थावच्चासुत के बालों को चार अंगुल कटवा लिया और उन्हें स्मृति के लिए रख लिया। फिर बाद में थावच्चासुत ने भगवान् के १. थावच्चासुत-ऋषि-चौपाई (१.९.२-५)
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