Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text
________________
समयसुन्दर की रचनाएँ
१७५ अष्टम खण्ड में कवि का कहना है कि भावी प्रबल है। राम के सारे राज्य में सीता के शील पर कई तरह की आशंकाएँ फैलने लगीं। राम विकल्पों में फँस गए। अत्यधिक अपयश से बचने के लिए राम द्वारा गर्भवती सीता का अरण्य में निष्कासन कर दिया गया। विरहिणी, शोक-संतप्त सीता की वन में राजा वनजंघ से भेंट हुई। दोनों में परस्पर धर्मभाई-धर्मबहिन का सम्बन्ध स्थापित हो जाने से सीता वज्रजंघ के साथ पुण्डरीकपुर चली गई। उधर धीर एवं संयमी राम की विकलता गम्भीर बनती जा रही थी। इधर सीता ने लव-कुश नामक युगल बच्चों को जन्म दिया। यौवनकाल में वे प्रौढ़ पराक्रमी हुए। उन्होंने पृथु राजा को भी पराजित किया। वज्रजंघ की सभा में नारद मुनि ने आकर लवकुश का वास्तविक परिचय दिया। लव-कुश को अयोध्या जाने की जिज्ञासा हुई। रामलक्ष्मण का मान-भंग करने के लिए लव-कुश ने ससैन्य अयोध्या की ओर प्रयाण किया। लव-कुश का राम से युद्ध हुआ। भेद खुलने पर सभी गले मिले और सभी ने एक-दूसरे का अभिनन्दन-अभिवादन किया। इसी के साथ 'श्री सीतारामप्रबन्धे सीता-परित्याग, वज्रजंघ-गृहानयन कुश-लव-युद्ध-कुशलव कुमारायोध्यायाप्रवेशादि वर्णनोनाम अष्टम खण्ड' सम्पूर्ण होता है।
नवम खण्ड में कवि ने लिखा है कि सग्रीव आदि सीता को लेने के लिए पुण्डरीकपुर गए। सीता अयोध्या-निवास की अनिच्छा प्रकट करती हुई अपने शील की सत्यता प्रमाणित करना चाहने लगी। अयोध्या में सीता ने अग्निपरीक्षा द्वारा धीज करना स्वीकार किया। निमित्तप्रभावक सिद्धार्थ मुनि ने आकर कहा - 'शील गुणादि से सती सीता एकान्त पवित्र है। मैं निमित्त के बल पर कहता हूँ कि सीता के शील के प्रभाव से अग्नि तुरन्त ही जल के रूप में परिणत हो जाएगी।' वास्तव में अग्नि की प्रचण्ड ज्वालाएँ जल-स्रोतों के रूप में बदल गयीं। सीता के निर्मल शील की प्रसिद्धि सर्वत्र फैल गई और उभयकुल उज्ज्वल हुए। उसी समय सीता ने सर्वगुप्ति मुनि से चारित्र ग्रहण कर लिया। राम, विभीषण आदि के पूछने पर केवली मुनि ने राम-लक्ष्मण का रावण के साथ युद्ध, सीताकलंक आदि का कारण बताया।
राम-लक्ष्मण में अनन्य और अटूट प्रेम था, जिसकी चर्चा इन्द्रसभा में हुई। दो देव परीक्षा करने के लिए आए। जब उन्होंने देवमाया से राम को मृत दिखाया, तो लक्ष्मण ने उसी क्षण अपने प्राण त्याग दिये। राम सचेत होने पर उस मृत देह को छ: महीने तक प्रेमवश अपने कन्धे पर रखे रहे। अन्त में इन्द्र द्वारा प्रतिबोध पाकर राम ने शत्रुघ्न आदि हजारों पुरुषों के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। पूर्ण आत्म-शुद्धि होने पर राम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने धर्मदेशना दी, जिसे सीतेन्द्र देव (सीता का जीव) प्रभृति ने भी सुनी। भगवान् रामचन्द्र ने निर्वाण-पद प्राप्त किया। सीतेन्द्र का जीव भी भविष्य में सिद्धि-स्थान को प्राप्त करेगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org