Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text
________________
१६२
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व वामन रूप में सिंहलकुमार ने पटह सुना। वामन तीनों युवतियों के पति के साथ घटित घटनाओं आदि की थोड़ी-सी कथा कहकर शेष कथा दूसरे दिन पर स्थगित कर देता था। आगे की बात सुनने की जिज्ञासा से क्रमश: तीनों स्त्रियाँ बोल उठीं। राजा ने अपने वचन के अनुसार राजकुमारी का उससे विवाह कर दिया। वहाँ देव ने उसका असली रूप दे दिया। सब में आनन्द छा गया। कुमार ने देव से पूछा – तुम कौन हो और निष्काम मेरा उपकार कैसे किया? देव ने कहा- मैं नागकुमार देव हूँ, तेरी समस्त आपदाओं को मैंने ही दूर किया है। देव ने उसका पूर्व भव बताया और कहा कि तुम्हारे पूर्व भव के कृत धर्म-दान आदि से तुम्हारे पुण्य प्रबल हैं, साथ ही तुमसे मेरा स्नेह है। तुम्हें कुरूप वामन करने का मेरा उद्देश्य था कि यह पुरोहित तुम्हें पहचान कर मारने का षडयन्त्र न रचे। पूर्वभव सुनने से कुमार को जातिस्मरण हो गया। राजा ने पुरोहित को मारने की आज्ञा दी, परन्तु कृपालु कुमार ने उसे छुड़ा दिया।
कुमार चारों पत्नी-सहित माता-पिता के पास उड़नखटोली से पहुँचा। सबका वियोग दूर हुआ। राजा कुमार को अपने सिंहासन पर अभिषिक्त कर स्वयं दीक्षित हो गया। सिंहलकुमार ने दिनोंदिन अधिकाधिक धर्म-ध्यान करते हुए श्रावक-धर्म का पालन किया तथा अन्त में समाधिपूर्वक मरकर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ। भविष्य में वह मोक्षपद प्राप्त करेगा।
प्रस्तुत कथानक की ऐतिहासिकता बताने के लिए हमें इसका कोई उल्लेखनीय प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने प्रस्तुत रास के कथानक को कवि द्वारा कल्पित माना है। हमें लगता है कि यह कथानक या तो कवि-कल्पित है अथवा तत्कालीन प्रचलित कोई लोककथा है। ४.१.५ पुण्यसागर-चरित्र-चौपाई
कविवर्य समयसुन्दर ने इस ग्रन्थ का प्रणयन किसी प्राचीन अन्य कवि के द्वारा विरचित 'शान्तिनाथ-चरित्र' के आधार पर किया है। इस बात का उल्लेख स्वयं कवि ने ही किया है। इसका रचना-काल विक्रम सं० १६७३ का भाद्र मास है। वे स्वयं लिखते हैं -
शान्तिनाथ जिन सोलमउ, तसु चरित चउसाल। ए मई तिहां थी ऊधर्यउ, सम्बन्ध विसाल॥ सम्वत् सोल तिहुत्तरइ, भर भादव मास।
ए अधिकार पूरउ कर्यउ, समयसुन्दर सुखवास ॥२ इसमें १५ ढाल हैं। प्रत्येक ढाल के पूर्व में दोहा-सोरठा आदि का भी प्रयोग किया गया है। समस्त सामग्री ३०१ श्लोक-परिमाण है। इसकी हस्तलिखित पाण्डुलिपि १. देखें - जैन साहित्य संशोधक, खण्ड २, अंक ३, पृष्ठ २५ २. पुण्यसार-चरित्र-चौपाई (१५.१०-११)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org