Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व द्वारा उसे उसके पीहर पहुँचने का कहने पर उसने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि मैं परपुरुष के साथ नहीं जाऊँगी। प्रिय-मिलन के समाचार तुमने बताये, तुम्हारा यह उपकार ही बहुत है। यहीं पाँच ढालों में बने तीसरे खण्ड का समापन हो जाता है।
दीर्घकाल में प्रिय-मिलन की बात सुनकर दवदन्ती एक गुफा में तीर्थङ्कर शान्तिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित कर वहीं रहने लगी। उधर सार्थवाह दवदन्ती की खोज करता हुआ गुफा में आ पहुँचा। समीपवर्ती तापस भी उसके पास आने लगे। एक समय उसने तापसों को बाढ़ में डूबने से बचाया।सभी तापस भी उसकी गुफा के पास रहने लगे
और सार्थवाह ने तापसपुर नगर बसाया। यहीं कूबर के पुत्र सिंहकेसरी को कैवल्य और मोक्ष प्राप्त हुआ। यह जानकर दवदन्ती को प्रव्रज्या लेने की अभिलाषा हई। मुनि यशोभद्र ने उसे प्रव्रज्या अङ्गीकार करने के लिए मना किया, साथ ही उसके पूर्वभव का वृत्तान्त सुनाकर उसकी वियोगावस्था का कारण बताया।
एक दिन किसी पुरुष के कथन पर दवदन्ती पति की खोज में निकली और पुनः जङ्गलों में भटक गई। यहाँ उसे एक राक्षसी का सामना करना पड़ा, लेकिन सतीत्व-बल और धर्म-बल के कारण राक्षसी उसका कुछ न कर सकी। सार्थवाह ने दवदन्ती को खोजकर उसे अचलपुर पहुँचाया और उसी के साथ कवि ने नलदवदन्ती रास के चौथे खण्ड को छ: ढालों में सम्पूर्ण किया है।
कवि समयसुन्दर नल-दवदन्ती के कथानक का सुन्दर और रसप्रद वर्णन करते हुए कहते हैं कि दवदन्ती अचलपुर में रानी चन्द्रयसा एवं ऋतुपर्ण राजा के वहाँ रहने लगी
और नल की जानकारी पाने के आशय से दानशाला में दान देने लगी। नल और दवदन्ती की खोज के लिये राजा भीम द्वारा प्रेषित विप्र हरिमित्र अचलपुर आया। दान लेते समय वह दवदन्ती को पहचान गया। उसने शीघ्र राजा एवं रानी से इस सम्बन्ध में चर्चा की। यद्यपि ये दोनों दवदन्ती के मौसा-मौसी थे, परन्तु एक-दूसरे को पहचान न पाये थे। इस हेतु राजा-रानी ने दवदन्ती से क्षमा मांगी। हरिमित्र दवदन्ती को कुण्डिनपुर ले आया। राजा भीम पुत्री-मिलाप से अत्यन्त हर्षित हुआ। नल के विषय में जानकारी प्राप्त होने पर राजा भीम ने दवदन्ती के पुनः स्वयंवर करने का काल्पनिक समाचार दधिपर्ण राजा के यहाँ प्रेषित किया और स्वयंवर का समय बहुत कम दिया। दधिपर्ण राजा और हुंडिक रास्ते में अपनी-अपनी विद्याओं का विनिमय कर कुण्डिनपुर आ पहुँचे; लेकिन कुण्डिनपुर में स्वयंवर का कोई चिह्न न देखने पर दधिपर्ण बहुत आश्र्चचकित हुआ। वस्तुत: यह हुंडिक को बुलाने की एक युक्ति थी। भीमराजा एवं दवदन्ती ने इस कुबड़े हुंडिक की परीक्षा करके देखा और यह नल ही है, ऐसा विश्वास होने पर उन्हें बड़ा आनन्द मिला। अन्त में नल ने भी दिव्य वस्त्रादि धारण कर स्वयं का सच्चा स्वरूप प्रकट किया। इस प्रकार कलात्मक ढंग से पाँच ढालों में कवि ने पांचवाँ खण्ड सम्पूर्ण किया।
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