Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
संवत सोल तिहुत्तरई, मास बसंत आणंद। .
नगर मनोहर मेडतऊ, तिहाँ वासुपूज्य जिणंद ॥१ कवि की इस रचना के समसामयिक ही अन्य कवियों ने भी नल-दवदन्ती-रास का प्रणयन किया है, जिनमें वि.सं. १६६४ में मेघराजकृत, वि.सं. १६६५ में नयसुन्दर कृत तथा वि.सं. १६६४ में नारायण कृत नलदवदन्ती (दमयन्ती) रास मिलते हैं; परन्तु उपर्युक्त रचनाओं की आलेखन-पद्धति आदि का सामान्य प्रभाव भी कवि समयसुन्दर पर नहीं पड़ा है।हाँ! कथावस्तु का आधार कवि ने पूर्ववर्ती साहित्य के 'पाण्डव-चरित्र' एवं 'नेमिचरित्र' से अवश्य लिया है, जैसा कि कवि ने स्वयं लिखा है -
पांडवनेमिचरित्र हो, ए अधिकार तिहां थी उघर्यऊ।
चंचल कविअण चित्त हो, कवियण केरी किहाँ कवि चातुरी ॥२
कवि के इस ग्रन्थ का परिमाण लगभग १३०७ श्लोक-प्रमाण है। प्रस्तुत ग्रन्थ की भाषा प्राचीन राजस्थानी-गुजराती है। यह कृति सरल, सुबोध, आह्लाददायक एवं काव्य-रस से परिपूर्ण है। अभी तक की शोध से इस रचना की छ: प्रतियाँ मुनि पुण्यविजय, डॉ. रमणलाल ची. शाह आदि को प्राप्त हुई हैं। डॉ. रमणलाल ची. शाह ने विभिन्न प्रतियों के पाठान्तरों का निर्देश करते हुए भारतप्रकाशन, अहमदाबाद से गुजराती-लिपि में इसे प्रकाशित किया है।
भारतीय सहित्य में नल-दमयन्ती की कथा प्राचीनकाल से प्रचलित है। 'महाभारत', 'श्रीहर्षचरित्र', 'नैषधीयचरित', 'नलचम्पू', 'नलोदय', 'नलअभ्युदयकाव्य' आदि में नल-दमयन्ती की कथा वर्णित है। जैन-परम्परा में भी 'वृहत्कथा', 'वसुदेव हिण्डी','कथासरितसागर', 'त्रिषष्ठिशलाका-पुरुष', 'नलविलास नाटक' 'पाण्डवचरित्र' आदि ग्रन्थों में नल-दमयन्ती की कथा पाई जाती है। अपभ्रंश और प्राचीन हिन्दी जैन साहित्य में भी नल-दमयन्ती की कथा उपलब्ध होती है। विवेच्य कवि के नल-दवदन्ती रास' के कथानक का मुख्य आधार भी जैन-परम्परा में रचित प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश कथा-साहित्य ही है।
प्रस्तुत कृति 'नलदवदन्ती रास' के प्रथम खण्ड के प्रारम्भ में कवि ने सीमन्धर स्वामी, तीर्थङ्करों, केवलज्ञानियों, गणधरों, साधुओं और स्वयं के गुरु तथा सरस्वती को नमन करके कथा का आरम्भ किया है। कवि ने अयोध्या नगरी की शोभा का वर्णन करते हुए वहाँ के राजा निषध के नल और कूबर नामक दो पुत्रों का उल्लेख किया है। इनमें नल तेजस्वी और उदात्त था।
१. वही (६.१०) २. वही (६.९.१४)
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