Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व खण्ड में एक-एक प्रत्येक-बुद्ध का वर्णन किया गया है। सभी खण्डों का रचनाकाल भी पृथक्-पृथक् है, जो कि खण्ड के अन्त में निर्दिष्ट है ।
समयसुन्दर कृत 'चार प्रत्येक-बुद्ध-चौपाई' के आदि में कवि ने अरिहन्त महावीर, लब्धिभण्डार गौतम तथा माता सरस्वती का स्मरण करके चार प्रत्येकबुद्धों का नामोल्लेख किया है । तत्पश्चात् कवि ने लिखा है कि चम्पा नामक एक नगरी थी । दधिवाहन वहाँ का राजा था। पद्मावती उसकी रानी थी। एक बार उसे छत्रधारक राजा के साथ गजारूढ़ होकर कानन - उद्यान में विचरण करने का दोहद उत्पन्न हुआ। राजा ने रानी की इच्छा - पूर्ति के लिए वैसा ही किया, लेकिन हाथी उन्मत्त होकर उन्हें भैरव अटवी में ले गया। सभी साथी पीछे छूट गए। हाथी ने न रुकने पर वट वृक्ष की शाखा पकड़कर उतरने के निर्णय के अनुसार राजा तो उतर गया, परन्तु रानी न उतर सकी। हाथी भाग हुआ प्यास के मारे एक सरोवर के निकट पहुँचा। रानी अवसर पाकर धीरे से नीचे उतर गयी। धर्म को शरण रूप समझकर उसने धर्म की शरण लेना ही समीचीन समझा। उसने जान या अनजान में हुए अपराधों के लिए प्राणिमात्र के प्रति 'मिच्छामि दुक्कड़' (मिथ्या दुष्कृतम) दिया और यह कहकर चतु: शरणपूर्वक सागारी अनशन ग्रहण कर लिया इ मे हुज्ज पाओ, इमस्स देहस्स इमाइ वेलाए ।
आहार मुवहि देहं सव्वं तिविहेण वोसिरियं ॥
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( कवि ने इसका तीसरी ढाल में विवचेन किया है। यह ढाल 'पद्मावतीआराधना - स्तवन' के रूप में आज भी जैन समाज में प्राणान्त होने वाले व्यक्ति को श्रवण करायी जाती है । यहाँ यह स्पष्ट कर देना अपरिहार्य है कि कवि के नाम से 'पद्मावती आराधना' नामक जो स्वतन्त्र रचना समझी जाती है, वह वस्तुतः स्वतन्त्र न होकर 'चार प्रत्येक-बुद्ध चौपाई' का ही एक अंश है ।)
पद्मावती वहाँ से चली। आगे उसकी एक तापस से भेंट हुई, जो राजा चेटक का परिचित था और पद्मावती चेटक की पुत्री थी। उसने पद्मावती को धैर्य दिलाकर आग्रहपूर्वक फलाहार कराया। गाँव की सीमा पर पहुँचाकर उसने कहा- 'यह दन्तपुर का पथ है; वहाँ दन्तचक्र राजा राज्य करता है । तूं नगर में निर्भय होकर जा ।'
पद्मावती दन्तपुर में सीधी आर्याओं के उपाश्रय में पहुँची । आर्या के उपदेश से संसार को असार समझकर वैराग्यपूर्वक वह दीक्षित हो गई, लेकिन उसने अपने गर्भ की बात छिपाकर रखी थी। प्रसव होने पर रत्नकम्बल में बालक को नामांकित मुद्रिका सहित लपेटकर श्मशान में रख आई । श्मशान - पालक चण्डाल ने बालक को अपनी पत्नी को दे दिया। उसने उसका ‘अवकर्णिक' नाम रखा, किन्तु हाथ में खुजली होने से उसका नाम 'करकण्डु' प्रसिद्ध हुआ। साध्वी पद्मावती पुत्रमोहवश उसे मोदकादि भी लाकर खिलाती थी । करकण्डु बड़ा होकर श्मशान की देखभाल करने लगा। एक बार वंशजाल में उत्पन्न
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