Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व कि तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। सुबह जब कृष्ण ने वह हार जाम्बवती के गले में देखा, , तो उन्होंने इसे प्रद्युम्न की ही करतूत समझी।
तसे उत्पन्न हुए पुत्र का 'शाम्ब' नामकरण किया गया। वह शैशवकाल में ही समस्त कलाओं में पारंगत हो गया। उसका भी पचास कन्याओं से विवाह हुआ । शाम्ब और प्रद्युम्न में घनिष्ठ मैत्री हो गयी ।
एक दिन रुक्मिणी ने भोजकटक के राजा रुक्मी को उसकी पुत्री वैदर्भी से अपने पुत्र प्रद्युम्न का विवाह करने का सन्देश कहलवाया । रुक्मिणी रुक्मी के इस प्रत्युत्तर से खिन्न हो उठी कि वह चांडाल - पुत्र को अपनी पुत्री नहीं देगा। रुक्मिणी के दुःख को दूर करने के लिए प्रद्युम्न और शाम्ब दोनों भोजकटक गये। उन्होंने चाण्डाल का रूप बनाया और वहाँ मधुर गीत गाने लगे। उन्होंने वहाँ एक मदोन्मत्त हाथी को भी वश में कर लिया। अन्तत: उसी वेश में प्रद्युम्न ने वैदर्भी से पाणिग्रहण किया । प्रद्युम्न का वास्तविक परिचय मिलने पर रुक्मी आदि सभी प्रसन्न हुए । प्रद्युम्न और शाम्ब द्वारिका लौट आए । शाम्ब और सत्यभामा का पुत्र भानुकुमार - दोनों जब भी खेलते थे, शाम्ब को ही विजयश्री प्राप्त होती । भानु श्रीकृष्ण से शिकायत करता और श्रीकृष्ण जाम्बवती से । जाम्बवती कहती - मेरा पुत्र बड़ा सीधा और सयाना है। एक दिन कृष्ण शाम्ब की शरारत दिखाने के लिए जाम्बवती को साथ ले गये। दोनों अहीर अहीरनी का रूप बनाकर शाम्ब के क्रीड़ा स्थल पर पहुँचे। शाम्ब ने अहीरनी को छेड़ा और उसका हाथ पकड़ लिया । जाम्बवती एवं कृष्ण ने जैसे ही अपना यथार्थ रूप प्रकट किया, शाम्ब वहाँ से नौ - दौ ग्यारह हो गया ।
दूसरे दिन, शाम्ब एक लकड़ी की कील गढ़ता हुआ राज्य सभा में पहुँचा। श्रीकृष्ण के द्वारा कील गढ़ने का कारण पूछने पर उसने कहा कि जो गत दिवस की घटना का उल्लेख इस सभा में करेगा, यह कील मैं उसके मुँह में गाड़ दूंगा। यह सुन कृष्ण ने कुपित होकर उसे नगर से बाहर निकाल दिया। उधर प्रद्युम्न भी भानु को छेड़ने लगा । सत्यभामा ने उसे भी नगर के बाहर निकलवा दिया। प्रद्युम्न और शाम्ब – दोनों श्मशानस्थल पर मिल गये ।
इधर सत्यभामा अपने पुत्र भानु के विवाह की तैयार करने लगी। वह भानु का विवाह १०० कन्याओं से कराना चाहती थी । निन्यानवे कन्याएँ तो उसे मिल गईं और एक कन्या की खोज कराने लगी।
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प्रद्युम्न ने अवसर का लाभ उठाकर विद्या-बल से स्वयं को जितशत्रु राजा और शाम्ब को अपनी पुत्री बना लिया। सत्यभामा ने इसे देखते ही अपनी सौंवी वधू बनाने हेतु जितशत्रु रूप प्रद्युम्न से मांग लिया । शाम्ब सत्यभामा के संग गया और युक्तिपूर्वक निन्यानवे कन्याओं के साथ पाणिग्रहण कर अपना असली रूप प्रकट कर दिया । सत्यभामा
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