Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व एक दिन चण्डप्रद्योत ने द्विमुख की मदनमञ्जरी नामक कन्या को देखा और वह उसपर अनुरक्त हो गया। द्विमुख ने दोनों का विवाह कर दिया और उसे विदा कर दिया।
एक बार इन्द्रोत्सव के अवसर पर राजा के आदेश से नागरिकों ने इन्द्र-ध्वज खड़ा करके उत्सव मनाया। कुछ दिन बाद राजा ने उसी इन्द्रध्वज को मलमूत्रादि रूप दुर्गन्धपूर्ण स्थल पर पड़ा देखा। इससे राजा संसार से विरक्त हो गया। प्रतिबोध पाकर प्रत्येक-बुद्ध हो गया। शासन-देव प्रदत्त लिंग ग्रहण कर वह प्रव्रजित हो गया और संयम पालन करता हुआ विचरण करने लगा। कवि ने ऋद्धि, समृद्धि, पुद्गल की विरसता तथा विद्युत की भाँति चपलता बताने के लिए यहाँ अनेक विश्रुत व्यक्तियों के उदाहरण दिये हैं। इसी के साथ द्वितीय खण्ड की समाप्ति होती है। यह खण्ड आगरा में शुक्रवार, चैत्रवदि १३, वि० सं० १६६४ में पूर्ण रचा गया।
तृतीय खण्ड में समयसुन्दर ने नमि नामक तीसरे प्रत्येक-बुद्ध का अङ्कन किया है। 'उत्तराध्ययन-नियुक्ति' में विदेह राज्य में दो नमि होने का उल्लेख मिलता है। दोनों अपने-अपने राज्य का त्याग कर श्रमण बने। अन्तर इतना ही है कि एक तीर्थकर हुए, दूसरे प्रत्येक-बुद्ध। कवि ने इस खण्ड में दूसरे नमि का विवरण एवं परिचय दिया है।
अवंती देश (आधुनिक मालवा) के सुदर्शनपुर नगर में सम्राट मणिरथ राज्य करता था। उसका कनिष्ठ भाई जुगबाहु था। जुगबाहु/युगबाहु की पत्नी मदनरेखा लावण्यवती थी। कवि ने वहाँ अनेक महापुरुष संयमियों के कामग्रस्त हो जाने का उल्लेख किया है। मणिरथ भी कामासक्त हो गया और उसने कपटपूर्वक युगबाहु की हत्या कर दी। मदनरेखा उस समय गर्भवती थी। शीलरक्षा के लिए वह जंगल में निकल गई। उसने जंगल में एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। उस शिशु को मिथिला का राजा पद्मरथ ले गया और उसका नाम 'नमि' रखा।
इधर मणिप्रभ विद्याधर ने मदनरेखा को अपनी पत्नी बनाना चाहा। मदनरेखा उसके साथ तीर्थयात्रा करती हुई मणिचूड़ नामक चारण मुनि के पास गई। उन्होंने मणिप्रभ को उपशान्त किया। उसने मदनरेखा को बहिन रूप में मानकर क्षमायाचना की। संसार को सारशून्य समझ कर मदनरेखा साध्वी बन गई।
पद्मरथ के अनगार बन जाने पर 'नमि' मिथिला का राजा बना। नमि का धवल हाथी एक बार उन्मत्त होकर भागता हुआ सुदर्शनपुर जा पहुँचा। चन्द्रयश राजा ने उसे पकड़ लिया। दोनों में युद्ध होने लगा। साध्वी मदनरेखा दो भ्राताओं के मध्य होने वाले युद्ध को रोकने के लिए सुदर्शनपुर आई। उसने दोनों के भ्रातृ-सम्बन्ध का रहस्य प्रकट किया। चारों ओर आनन्द छा गया। बाद में चन्द्रयश ने मुनि-जीवन ग्रहण कर लिया। १. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा २६७
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