Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सकति नहीं मुझ तेहवीं, बुद्धि नहीं सुप्रकाश।
वचन-विलास नहीं तिसउ, ए पिण प्रथम अभ्यास॥ कवि ने 'अन्तकृद्दशांग' ग्रन्थ में निबद्ध शाम्ब और प्रद्युम्न के कथानक के आधार पर अपने रास का प्रणयन किया है। कवि ने लिखा है
आठमइ अंगइ ए कह्या, संक्षेपइ सम्बन्ध। पणि हुं प्रकरण थी कहिसि, विस्तर पणइ प्रबन्ध॥२
आठमइ अंगइ ए कह्या, संब-प्रद्युम्न अधिकार।
सोहम सामि उपदिसइ, जंबू नइ सुविचार ॥३ यह कृति वि० सं० १६५९, विजयादशमी को खम्भात में श्री स्तम्भन पार्श्वनाथ की कृपा से सम्पूर्ण हुई। निम्नांकित वाक्यों से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है –
सुखकार संवत सोल ए गुणसठि, विजयादसमी दिनइ।
एकबीस ढालइ रसाल ए, ग्रन्थ रच्यउ सुन्दर शुभ मनइ ॥४
समयसुन्दर ने इसकी रचना जैसलमेर के साहित्यप्रेमी शाह शिवराज के आग्रह से की थी। श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर से प्राप्त एक प्रति में उक्त तथ्य का इस प्रकार उल्लेख है -
'इति जैसलमेरु वास्तव्य नानाविध शास्त्र-विवेक, रसिक लोढा सा० सिवराज अभ्यर्थनया कृतः शाम्ब-प्रद्युम्न-सम्बन्ध समाप्तः।'
प्रस्तुत रचना का निर्माण कवि का प्रथम प्रयास होते हुए भी काव्यत्व की दृष्टि से सुनियोजित एवं वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' से ओतप्रोत है। रचना का कथानक और कथानक को ढालने की कला - दोनों ही रोचक हैं।
स्व० पूरणचन्दनाहर संग्रहालय, कोलकाता से प्राप्त इस रचना की पाण्डुलिपि में दो खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में १३ ढाले हैं। प्रत्येक ढाल के प्रारम्भ में कुछ दोहे हैं । द्वितीय खण्ड में ८ ढालें हैं। इसमें भी सभी ढालों के प्रारम्भ में कुछ दोहे दिये गये हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण कृति २१ ढालों में निबद्ध है, जिसमें कुल ६३५ पद्य हैं। ग्रन्थ-परिमाण ८०० श्लोक है।
कवि समयसुन्दर ने सर्वप्रथम तीर्थङ्कर नेमिनाथ, स्तम्भन पार्श्वनाथ, महावीर, गणधर गौतम और सद्गुरु का स्मरण और उन्हें वन्दन किया है। तत्पश्चात् कथा का १. शाम्ब-प्रद्युम्न-चौपाई, (खण्ड १, ढाल १ से पूर्व, दूहा ५) २. वही (दूहा ८) ३. वही (२.८.३३) ४. शाब-प्रद्युम्न-चौपाई (१.१.३३)
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