Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ गुम्फन किया है। कथासार अधोअङ्कित है -
__द्वारामती (द्वारिका) नगरी में वासुदेव कृष्ण शासन करते थे। वे सोलह हजार राजाओं के स्वामी थे। कृष्ण की अनेक पत्नियों में सत्यभामा पटरानी थी, तो रुक्मिणी सर्वाधिक प्रिय।
एक बार एक साधु रुक्मिणी के यहाँ आया। रुक्मिणी ने उससे सभक्ति पूछा - 'मेरे पुत्र होगा या नहीं?' साधु ने कहा - 'तुम्हें पुत्र की प्राप्ति निश्चित होगी।' साधु के ये वचन सत्यभामा ने सुन लिये। रुक्मिणी और सत्यभामा दोनों यह कहती हुई परस्पर कलह करने लगी कि साधु ने पुत्र-प्राप्ति का आशीर्वाद तुम्हें नहीं, अपितु मुझे दिया है। अन्त में कृष्ण, वलभद्र आदि के साक्ष्य में दोनों ने यह निर्णय किया
अम्ह बिऊँ माहि जे जूठी पड़इ । तेइ तणइ सिरए दंड चडइ ।। पडिलउ परणइ सुत जेहनइ। ए कुमरि वरिसइ तेहनइ॥
मस्तक मुंडी तेहना बेस, पडलइ चडस्यइ किस्युं कलेस॥१ अर्थात् - हम दोनों (रुक्मिणी और सत्यभामा) में जो असत्य सिद्ध होगी, उसी के ऊपर यह दण्ड चढ़ेगा कि जिसके पुत्र का विवाह पहले होगा, उसकी जीत होगी और दूसरी विवाहोत्सव में अपने केश उतार देगी, जो वधू के 'पड़ले' में चढ़ाये जायेंगे।
कुछ समय पश्चात् रुक्मिणी और सत्यभामा दोनों की कुक्षि से एक-एक पुत्र का जन्म हुआ। एक दिन रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न को कृष्ण अपनी क्रोड़ में क्रीड़ा करा रहे थे कि धूमकेतु देव प्रद्युम्न से पूर्वभव का वैर होने के कारण रुक्मिणी का रूप बनाकर कृष्ण के पास आया और उनसे बालक मांगा। कृष्ण ने सहजभाव से उसे बालक दे दिया। वह बालक को लेकर जंगल में गया और आकाश से ही बालक को नीचे गिरा दिया, किन्तु बालक पुष्प-पत्रों पर गिरने से बच गया। उस मार्ग से गुजरते हुए कालसंवर नामक विद्याधर ने उस बालक को ग्रहण कर लिया और निस्सन्तान दुःखियारी अपनी पत्नी कनकमाला को उसे सौंप दिया। कनकमाला उसका स्नेहपूर्वक पालन-पोषण करने लगी।
उधर जब प्रद्युम्न के अपहरण का रहस्य प्रकट हुआ, तो रुक्मिणी आदि सभी को बड़ा दुःख हुआ। यादव-सभा में सहसा नारद महर्षि पधार गये। उन्होंने ऋषि से प्रद्युम्न की खोज करने का निवेदन किया।
नारद महाविदेह क्षेत्र में सीमन्धर स्वामी के पास गये और उन्होंने प्रद्युम्न के सम्बन्ध में सारी पूछताछ की। प्रभु ने सम्पूर्ण बात बताकर कहा कि प्रद्युम्न सोलह वर्ष पश्चात् स्वयं अपने माता-पिता से मिलेगा। सीमन्धर स्वामी ने उन्हें प्रद्युम्न के दस पूर्वभवों को भी सविस्तार बताया। १. शाब-प्रद्युम्न-चौपाई (२.८ ३८)
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