Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इस ग्रन्थ की पाण्डुलिपि श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर पंचायती बड़ा मंदिर, वाराणसी से प्राप्त हुई है । पाण्डुलिपि पूर्ण सुरक्षित है । ग्रन्थ प्रकाशन योग्य है । १.११ दीक्षा-प्रतिष्ठा - शुद्धि
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इस ग्रंथ में जैन साधुओं के लिये दीक्षा और प्रतिष्ठा से संबंधित मुहूर्त्त, तिथि आदि ज्योतिषशास्त्रीय विषयों का गूढ़ विवेचन किया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के निर्माण में ग्रन्थकार ने अपने पौत्र- शिष्य ज्योतिषशास्त्र - निष्णात वाचक जयकीर्त्ति से सहायता ली थी। इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १६८५ में लूणकर्णसर नामक स्थान पर हुई थीं । ग्रन्थकार ने स्वयं इस बात का उल्लेख किया है
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श्री लूणकर्णसरसि, स्मरशर - वसु षडुडुपति-वर्षे । ज्योति: शास्त्रविचक्षण- वाचक- जयकीर्त्तिदत्त-साहाट्येः । श्री समयसुन्दरोपाध्यायैः सन्दर्भितो ग्रन्थः ॥ १ १.१२ विसंवादशतक
प्रस्तुत शतक की विषय-वस्तु असंगत, असम्बद्ध और विरोधात्मक विषयों से सम्बन्धित है। जिन आगमों तथा शास्त्रों में परस्पर विसंवादित बातें प्राप्त होती हैं, उनका नामोल्लेख करते हुए विसंवादित बातों को प्रस्तुत किया गया है। ग्रन्थकार ने अपनी ओर से उन विसंवादों का स्पष्टीकरण नहीं किया है। वे अनेक स्थानों पर इस बात का अवश्य उल्लेख करते हैं कि इन विसंवादों में सत्य क्या है, यह केवलज्ञानी ही जानते हैं ।
समयसुन्दर ने प्रस्तुत ग्रन्थ में कुल १०० विसंवादित विषयों का विनियोजन किया है। यद्यपि प्राप्त प्रति में १०२ विसंवादपूर्ण तथ्यों का निरूपण है, किन्तु समयसुन्दर ने १०० विसंवादपूर्ण तथ्यों की ही चर्चा ही है। कारण, १०० विसंवादपूर्ण तथ्यों के पश्चात् प्रशस्ति दी गई है और उसके बाद पुनः २ नये विसंवादपूर्ण तथ्यों की चर्चा की गई है। हमें लगता है कि उनके परवर्ती काल में किसी ने अन्त में दो अन्य विसंवादपूर्ण तथ्यों को और जोड़ा है।
प्रस्तुत शतक का रचना काल वि० सं० १६८५ एवं रचना - स्थल अनुल्लिखित है । इस शतक की हस्तलिखित पाण्डुलिपि श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर से प्राप्त हुई है । प्राप्त पाण्डुलिपि सं० १८८९ में लिखित है । सम्प्रति, वह सुपाठ्य नहीं है एवं अशुद्ध भी है । अत: इस शतक के प्रत्येक प्रकरण के वर्ण्य विषय का यहाँ उल्लेख नहीं किया जा सकता। जितना पढ़ा जा सका, उसी के आधार पर उक्त निष्कर्ष निकाला है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है।
१.१३ खरतरगच्छ-पट्टावली
यह एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है। इसमें समयसुन्दर ने भगवान् महावीर के शिष्य १. दीक्षा - प्रतिष्ठा - शुद्धि, प्रशस्ति (१-२)
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