Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व मेरुसुन्दर आदि जैनविद्वानों ने भी 'वृत्तरत्नाकर' पर व्याख्या ग्रन्थ लिखे हैं।
प्रस्तुत वृत्ति छः अध्यायों में विभक्त है। वृत्ति का परिमाण ११०० श्लोकप्रमाण है। ग्रन्थ की रचना जालोर में फसला लूणिया प्रदत्त स्थान में वि० सं० १६९४ की दीपावली को पूर्ण हुई थी। वृत्तिकार ने स्वयं सूचित किया है --
संवति विधिमुखनिधि-रस-शशि-संङ्ख्ये दीप पर्व दिवसे च। जालोर - नामनगरे लूणे या फसलार्पितस्थाने ॥
वृत्ति की ३ हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ जैनभवन, कोलकाता में सुरक्षित रूप से उपलब्ध हैं। २.१४ सप्तस्मरणस्तव-वृत्ति
___ प्राचीन जैनाचार्यों ने तीर्थङ्कर आदि महापुरुषों की स्तुति के रूप में अनेक स्तोत्रों की रचना की है। 'सप्तस्मरणस्तव' उन्हीं में से एक है। यह सात प्रभाविक स्तोत्रों का संकलन है।
प्रस्तुति कृति 'सप्तस्मरणस्तव' पर समयसुन्दर की विस्तृत व्याख्या है। ये स्तोत्र प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। वृत्तिकार ने स्वयं भी वृत्ति के आरम्भ एवं अन्त में यह उल्लेख किया है कि यह वृत्ति मैंने ग्रन्थ के सुगमबोधार्थ लिखी है। उन्होंने अपनी वृत्ति में सप्त स्तोत्रों में प्रयुक्त शब्दों की व्युत्पत्ति, उनके अर्थ, व्याकरणगत नियम, समास, आगमप्रमाण तथा जिन पद्यों के साथ यदि कोई कथा आदि जुड़ी हो, तो उसका भी वर्णन और विवेचन किया है।
कवि समयसुन्दर ने प्रस्तुत वृत्ति श्री जिनप्रभसूरि कृत टीका के आधार पर लिखी है। वृत्ति की प्रशस्ति में यह भी निर्दिष्ट है कि इस वृत्ति का संशोधन मेरी (समयसुन्दर) वृद्धावस्था होने के कारण मेरे शिष्य हर्षनन्दन ने किया है। यह कृति वि० सं० १६९५ में फसला दत्त लूणिया के आग्रह से जालोर में रची गई है, जैसा कि वृत्यान्त में लिखा है -
लूणिया-फसला-दत्त-वसत्यां वृत्तिरुत्तमा।
श्रीजालोरपुरे बाण-निधि-शृंगार-संवति॥ पं० गिरधर लिखित इसकी पाण्डुलिपि में 'सप्तस्मरण-वृत्ति' का परिमाण दो हजार श्लोक-प्रमाण निर्दिष्ट है। यह ग्रन्थ श्री जिनदत्तसूरि-ज्ञान-भण्डार, सूरत द्वारा प्रकाशित हो चुका है।
१. वृत्तिकार ने मंगलाचरण के साथ 'सप्तस्मरण-वृत्ति' प्रारम्भ की है। उन्होंने 'श्री अजितशान्तिनाथस्तव' नामक प्रथम स्मरण में भगवान् अजितनाथ और शान्तिनाथ के गुणों की व्याख्या की है। तीर्थङ्करों की स्तुति ३४ पद्यों में है। तत्पश्चात् ३ पद्यों में स्तुति का उपसंहार है, जिसमें स्तुतिकर्ता का नाम महर्षि नन्दिषेण बताया गया है। स्मरण के १. द्रष्टव्य - जिनरत्नकोश, पृष्ठ ३६४
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