Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
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उपलब्ध है, इसकी सूचना किसी भी विद्वान् ने नहीं दी है । यद्यपि हमने इस वृत्ति को अनेक जैन ज्ञान-भण्डारों में खोजवाई, लेकिन उपलब्ध नहीं हो सकी। अत: इस वृत्ति के सम्बन्ध में कोई विशेष तथ्य प्रस्तुत नहीं किये जा सकते। महोपाध्याय समयसुन्दर के विद्वान् शिष्य हर्षनन्दन की ऋषिमण्डल टीका के बारे में तो जानकारी प्राप्त होती है, जो ४२००० श्लोक-परिमाण है ।
२.२ रूपक - माला- -वृत्ति
रूपकमाला नामक कृति तीन प्रकार की मिलती हैं - १. उपाध्याय पुण्यनन्दन कृत, २. पार्श्वचन्द्रसूरि कृत और ३. अज्ञात लेखक कृत । महोपाध्याय समयसुन्दर ने उपाध्याय पुण्यनन्दन कृत रूपकमाला पर वृत्ति लिखी है। रूपकमाला का सम्बन्ध भाषाशास्त्र एवं भाषाविज्ञान से है । समयसुन्दर ने प्रस्तुत वृत्ति में रूपकमाला ग्रन्थ के गूढ़ शब्दों की सूक्ष्म व्याख्या की है और अनेक महत्त्वपूर्ण बातों को स्पष्ट रूप से प्रकट किया है । वृत्ति की भाषा अत्यन्त स्पष्ट एवं सरल है और शैली सुबोध है। रूपकमाला पर यही एक वृत्ति है । भाषाशास्त्रिओं के लिए यह वृत्ति बहु-उपयोगी है ।
प्रस्तुत वृत्ति का परिमाण वृत्तिकार ने नहीं दिया है। इसकी रचना वि० सं० १६६३, कार्तिक शुक्ला १० को हुई थी, जैसा कि वृत्ति के अन्त में निर्दिष्ट है - संवति गुणरसदर्शनसोमप्रमिते च विक्रमद्रङ्गे ।
कार्तिक शुक्ल - दशम्यां विनिर्मिता स्व- पर शिष्यकृते ॥ २
इस वृत्ति की पाण्डुलिपि अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है । वृत्ति IT प्रकाशन नहीं हुआ है ।
२.३ दुरियरसमीरस्तोत्र - वृत्ति
'दुरियरसमीरस्तोत्र - वृत्ति' की रचना वि० सं० १६८४ में लूणकर्णसर नामक नगर में हुई थी । प्रस्तुत कृति में की गई व्याख्या से स्पष्ट होता है कि दुरियर - समीरस्तोत्र एक स्तुतिपरक रचना है। इसके कर्ता हैं, जिनवल्लभसूरि । इस स्तोत्र में भगवान् महावीर की जीवनी के कतिपय अंशों का उल्लेख करते हुए उनके आदर्श गुणों की हृदयहारी स्तुति गई है। मूल कृति मात्र ४४ गाथाओं में निबद्ध है, जो कि प्राकृत भाषा में है ।
समयसुन्दर ने इस वृत्ति को शिष्यों के पठनार्थ अति सरल, किन्तु प्रांजल भाषा गुम्फित किया है। शैली खण्डान्व्य है । विषय का विस्तृत विवेचन होने से 'वृत्ति' मूल कृति से कई गुनी वृहत् बन गई है।
प्रस्तुत वृत्ति जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार, सूरत से प्रकाशित है।
१. द्रष्टव्य - जिनरत्नकोश, पृष्ठ ६०
२. रूपकमालावृत्ति, प्रशस्ति (४)
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