Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व राजन्ते जिनराजसूरि गुरुवस्ते साम्प्रतं भूतले। युवराजजिनसागरसूरिवरे विजयिनि प्रकृति सौम्ये।
तद्गुरुणां प्रसादेन मया कल्पलता कृता। जिनराजसूरि को गच्छनायक-पद वि० सं०१६७४ में प्रदान किया गया था और जिनसागरसूरि वि० सं० १६७४ से वि० सं० १६८४ तक युवराज के रूप में जिनराजसूरि के आज्ञाधीन रहे । अतः यह टीका वि० सं० १६७४ से १६८४ के बीच ही रची गई। इसके अतिरिक्त एक अन्य और संकेत प्राप्त होता है, जो हमें 'कल्पलता' टीका के रचना-काल को स्पष्ट करने में बहुत सहायक होता है। वह है -
लूणकर्णसरे ग्रामे, प्रारब्धा कर्तुमादरात्।
वर्षमध्ये कृता पूर्णा, मया चैसा रिणीपुरे ॥२ अर्थात् लूणकर्णसर ग्राम में प्रारम्भ की और एक वर्ष में रिणीनगर में पूर्ण की।
'दरियरसमीरवत्ति' और 'सन्तोष-छत्तीसी' से ज्ञात होता है कि कवि वि० सं० १६८४ में रिणीनगर थे और 'यति-आराधना' से विदित होता है कि कवि वि० सं० १६८५ में रिणीनगर में विद्यमान थे। अत: यह सिद्ध हो जाता है कि कवि ने 'कल्पलता' का प्रणयन वि० सं० १६८४ से ८५ में मध्यवर्तीकाल में ही किया था। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने भी उपर्युक्त मत से ही कुछ सम्बन्धित विचार लिखे हैं।
इस ग्रन्थ का नामकरण 'कल्पलता' इसलिए किया गया है, क्योंकि इससे जो भी इच्छाएँ रखते हों, वह सब इस 'कल्पलता' में उपलब्ध हो जाएँगी। यह सूत्र प्राकृतगद्य में आबद्ध है। कवि ने उसकी टीका संस्कृत में की है। मूल ग्रन्थ में सूत्रों की अङ्कसंख्या २९१ है और अनुष्टुप श्लोक-परिमाण से पद्य-संख्या १२१५ अथवा १२१६ है। प्रस्तुत वृत्ति का ग्रन्थमान ७७०० श्लोक प्रमाण है। इस सूत्र में तीन वाचनाएँ अर्थात् अधिकार हैं- १. जिनचरित्र, २. स्थविरावली तथा ३. साधु-समाचारी।
___ 'जिनचरित्र' में पश्चानुपूर्वी से भगवान् महावीर, पार्श्वनाथ, अरिष्टनेमि (नेमिनाथ), २० तीर्थङ्करों का अन्तरकाल और ऋषभदेव प्रभु के जीवनवृत्त का वर्णन हुआ है। विशेष रूप से इनमें चार अर्हतों के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण रूप पांच कल्याणकों, उनके साधु-साध्वी परिवार का एवं अन्तकृभूमि का आलेखन किया गया है। भगवान् महावीर पर व्यापक रूप से विवेचन हुआ है। महावीरस्वामी के चरित्र में गर्भापहार, चौदह स्वप्न, अट्टणशाला, स्वप्नफल, जन्मोत्सव, दीक्षोत्सव, चातुर्मास तथा निर्वाण का विवेचन हुआ है। अन्य तीर्थङ्करों का जीवन-वृत्त संक्षेप में दिया गया है। १. कल्पलता, प्रशस्ति, १९-२१, पृष्ठ २८२ २. कल्पलता, प्रशस्ति (१७) पृष्ठ २८२ ३. द्रष्टव्य - कल्पलता, भूमिका पृष्ठ १४-१५
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