Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व यद्यपि महोपाध्याय विनयसागर ने इस वृत्ति का रचना काल सं० १६८५ उल्लिखित किया है, किन्तु वृत्तिकार द्वारा प्रयुक्त 'मुनि' शब्द ७ की संख्या का वाचक है, न कि ६ का। अतः इसका रचना-काल वि० सं० १६८७ है।
प्रस्तुत वृत्ति में समयसुन्दर ने प्रारम्भ में आद्य-मंगल करते हुए स्तोत्र-रचनाकार का कुछ परिचय एवं स्तोत्र-रचना का प्रयोजन बताया है, फिर स्तोत्र की विस्तृत व्याख्या की है। वृत्ति के अन्त में प्रशस्ति भी की गई है।
वृत्तिकार इस स्तोत्र की रचना का उद्देश्य बताते हुए कहते हैं कि एक बार अभयदेवसूरि व्याधिग्रस्त एवं जर्जरित हो गये। अनशन करने का विचार करने पर शासनदेवी ने कहा कि सेढ़नदी के पार्श्ववर्ती खोखरा पलाश के नीचे भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। आपकी स्तवना से वह जिनप्रतिमा प्रकट होगी। उस प्रतिमा के स्नात्रजल से आपकी सम्पूर्ण व्याधि नष्ट हो जाएगी। शासनदेवी के संकेतित स्थान पर वे गये और उन्होंने प्रस्तुत स्तोत्र रचकर पार्श्वप्रभु की स्तुति की। फलतः प्रतिमा का वैभव खण्डहरों से प्रकट हो गया। यह स्थान आज भी 'स्तम्भनपुरतीर्थ' के नाम से प्रसिद्ध है और यह स्तोत्र खरतरगच्छानुयायी प्रतिदिन प्रतिक्रमण में बोलते हैं। समयसुन्दर के अनुसार यह स्तोत्र महाप्रभाविक एवं महाचमत्कारिक है।
प्रस्तुत वृत्ति जिनदत्तसूरिज्ञानभण्डार, सूरत से प्रकाशित है। २.७ चत्तारि परमंगाणि-व्याख्या
प्रस्तुत कृति की पाण्डुलिपि नाहटा-बन्धुओं के संकेतानुसार अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है, किन्तु गवेषणा करने पर पाण्डुलिपि ग्रन्थालय में उपलब्ध नहीं पाई गई। लीमड़ी के ज्ञान भंडार में 'चत्वारि परमंगानिगाथा व्याख्यान' नामक ग्रन्थ की पाण्डुलिपि उपलब्ध है, किन्तु ग्रन्थकार का नाम आदि उसमें अनिर्दिष्ट है। सम्भव है कि वह पाण्डुलिपि प्रस्तुत कृति की हो। 'चत्तारि परमंगाणि' का संस्कृत रूप 'चत्वारि परमंगानि' होता है; परन्तु अन्य पाण्डुलिपि के प्राप्त हुए बिना न तो इस बात की पुष्टि की जा सकती है और न ही अन्य कोई उल्लेखनीय जानकारी दी जा सकती है।
महोपाध्याय विनयसागर के उल्लेखानुसार प्रस्तुत व्याख्या-ग्रन्थ का निर्माण संवत् १६८७, फाल्गुन शुक्ल ८ को श्रीपत्तन (पाटण) में पूर्ण हुआ था। उन्होंने 'चत्तारि परमंगाणि-व्याख्या' ग्रन्थ से एक पद्य भी उद्धृत किया है, जिसमें कृति का रचना-काल आदि उल्लिखित है -
१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुन्दर, पृष्ठ ५५ २. सीताराम-चौपाई, भूमिका, पृष्ठ ५५
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