Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व संगीति में दिये गये प्रमाण-पत्र की नकल एवं उसमें लिये गये निर्णयों को भी ग्रन्थकार ने प्रस्तुत अधिकार में दिया है। उस मतपत्र में उक्त विवाद के अतिरिक्त संगीति में आमन्त्रित एवं उपस्थित गच्छाचार्यों, विद्वत्मुनियों और प्रमुख पण्डितों का भी नामोल्लेख है। पाँचवाँ अधिकार - इस अधिकार में 'आयरिय-उवज्ज्ञाए' नामक सूत्र का पठन गृहस्थों को ही करना चाहिए, मुनियों को नहीं, पर सप्रमाण प्रकाश डाला गया है। छठा अधिकार- साधु के साथ साध्वी का विहार वर्जनीय है, इस तथ्य को आगमिक उद्धरण देकर स्पष्ट एवं पुष्ट किया गया है। सातवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में अधिक दिन तक भीगे हुए द्विदल, गेहूं आदि के बने हुए अचित्त पदार्थ मुनि के लिए ग्राह्य हैं, या नहीं - इस प्रश्न की चर्चा करते हुए इन पदार्थों की ग्राह्यता संबंधी खरतरगच्छीय अवधारणा को आगम-सम्मत सिद्ध किया है। आठवाँ अधिकार - इस प्रकरण में लेखक ने चतुर्दशी तिथि के टूटने पर पाक्षिक प्रतिक्रमण पौर्णमासी को करना ही आगम-सम्मत है- ऐसा सिद्ध किया है। नोवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में किस प्रकार का जल मुनि के लिए ग्राह्य है – इस संबंध में विचार करते हुए यह बताया है कि सभी प्रकार का प्रासुक जल मुनि के लिए ग्राह्य है। दसवाँ अधिकार – इसमें आचाम्ल (आयम्बिल-तप) में उपचित अर्थात् पक्व अन्न एवं प्रासुक जल के अतिरिक्त अन्य सभी खाद्य-पेय पदार्थों को त्याज्य बताया गया है। ग्यारहवाँ अधिकार - अपक्व दूध में द्विदल पदार्थ को ग्रहण करना उचित नहीं है- इस बात को प्रस्तुत अधिकार में आगमोद्धरणों से प्रमाणित किया गया है। बारहवाँ अधिकार – इस प्रकरण में मूंग आदि के समान संगर आदि भी द्विदल हैं या नहीं, इस प्रश्न की चर्चा की गई है और प्राचीन आचार्यों के मतों का उल्लेख करते हुए उनके द्विदलत्व को सिद्ध किया गया है। तेरहवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में प्रत्याख्यान लेते समय में पेय पदार्थ संबंधी 'पाणस्स लेवेण वाअलेवेण वा' आदि छ: आगार (अपवाद) संबंधी पाठ का उच्चारण किसे करना चाहिये और किसे नहीं करना चाहिए- इसकी चर्चा करते हुए यह सिद्ध किया है कि इस आगार-संबंधी पाठ का उच्चारण मात्र मुनियों को करना चाहिये, गृहस्थों को नहीं; क्योंकि गृहस्थ के लिए इन अपवादों का सेवन उचित नहीं है। चौदहवाँ अधिकार - सामान्यतया आगमों में द्रौपदी आदि के जिन प्रतिमा-पूजा संबंधी उल्लेख उपलब्ध होते हैं, फिर क्या कारण है कि खरतरगच्छ में श्राविकाओं को मूल प्रतिमा की पूजा का निषेध किया गया है। ग्रन्थकार ने इस समस्या की चर्चा करते हुए यह बताया है कि खरतरगच्छ में भी मात्र तरुण स्त्रियों के लिए पूजा का निषेध किया गया है, बाल अथवा वृद्ध स्त्रियों के लिये नहीं। तरुण स्त्रियों के लिए भी केवल चन्दनादि पूजा का निषेध
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