Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ गये हैं। सैंतालीसवाँ विचार - इसमें लेश्या के कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म और शुक्लइन छ: भेदों के स्वरूप का निरूपण किया गया है। अड़तालीसवाँ विचार- इसमें स्थानांग सूत्र' के आधार पर यह बताया गया है कि मुनि पूर्व दिशा और उत्तर दिशा की ओर ही दीक्षा, प्रतिक्रमणादि कार्य करते हैं। उनचासवाँ विचार- इसमें बताया गया है कि लोकान्तिक देवों को सातवें या आठवें भव में मोक्ष-पद अवश्य प्राप्त होता है। पचासवाँ विचार- इसमें यह बताया गया है कि शक्रेन्द्र के अपर नाम सोम, यम, वरुण, वैश्रमण भी हैं। यही नाम लोकपाल के भी हैं। इक्कावनवाँ विचार - इसमें सिद्ध किया गया है कि जम्बुद्वीप-प्रज्ञप्ति छठा उपांग है। बावनवाँ विचार - इसमें बताया गया है कि मुनि के रजोहरण के ऊपरी भाग में डोरी तीन बार आवेष्टित की जाती है। तिरेपनवाँ विचार- इसमें वर्णन किया गया है कि साधु श्रावक के प्रातिहार्य के कारण
औपग्रहिक वस्तु ग्रहण कर सकता है। चौपनवाँ विचार - इसमें बताया गया है कि जिस प्रकार सायंकालीन प्रतिक्रमण में चारित्र, दर्शन और ज्ञान का क्रमश: अनुक्रम से प्रतिक्रमण किया जाता है, उसी प्रकार प्रात:कालीन प्रतिक्रमण में भी इसी अनुक्रम से किया जाता है। पचपनवाँ विचार- इसमें सूर्य अपने आगे-पीछे और ऊपर-नीचे कितने क्षेत्र को ताप प्रदान करता है, इस सम्बन्ध में सप्रमाण विचार किया गया है। छप्पनवाँ विचार - इसमें सात अभव्यों का विवरण दिया गया है। सत्तावनवाँ विचार - इसमें बताया गया है कि कुछ साधुओं के अनाचारी होने पर भी वर्तमान में साधु-सत्ता विद्यमान है। अट्ठावनवाँ विचार - इसमें बताया गया है कि जिन-पूजा का अपलाप करने वाले व्यन्तर देवता के रूप में उत्पन्न होते हैं, क्योंकि उन्हें तीर्थों का उच्छेदक कहा गया है। उनसठवॉ विचार- इसमें २८ लब्धियों के नाम बताए गए हैं। साठवाँ विचार- इसमें इस बात की सविस्तार चर्चा की गई है कि प्रत्येकबुद्ध ४५ हैं। इकसठवाँ विचार- इसमें 'महानिशीथ सूत्र' के आधार पर जो व्यक्ति जिन-दीक्षा ग्रहण करने के योग्य नहीं है, उनका उल्लेख किया गया है; जैसे-कोढी, इन्द्रियहीन आदि। बासठवाँ विचार- इसमें 'षडावश्यक-बालावबोध' के आधार पर बताया गया है कि उसी अतिमुक्तक मुनि ने नदी में पात्र तिराया था, जो गौतम स्वामी को अंगुली पकड़कर अपने घर ले गया था। तिरसठवाँ विचार- इसमें द्वादशावर्त-वन्दन की विधि बताई गई है।
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