Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व चौसठवाँ विचार - इसमें कहा गया है कि 'जिन' शब्द का प्रयोग न केवल केवली के लिए अपितु छद्मस्थ वीतराग के लिए भी किया जा सकता है। पैंसठवाँ अधिकार- इसमें बताया गया है कि साधु ग्राम में एक दिन और नगर में पाँच दिन रह सकता है - यह नियम प्रतिमा-प्रतिपन्न भिक्षु के लिए है। छियासठवाँ विचार- इसमें प्रश्रव्याकरण-संवरद्वार' के आधार पर बताया गया है कि लवंग एक फल होता है। सड़सठवाँ विचार - इसमें 'आचारांगसूत्रवृत्ति' के आधार पर बताया गया है कि जातिस्मरणवान् संख्यात भव तक देख सकता है। अड़सठवाँ विचार - इसमें बताया गया है कि जिस तालाब आदि में मनुष्य, पशु आदि स्नान कर लेते हैं, वह पानी मिश्र-जल हो जाता है। उनहत्तरवाँ विचार- इसमें कहा गया है कि महा अटवी के मार्ग में आहार प्राप्त न होने पर साधु सत्तु, मोदक आदि पास में रखकर उनका परिभोग कर सकता है। सत्तरवाँ विचार- इसमें बताया गया है कि संघाचार्यों आदि का जो वैरी होता है, उसकी मुनि हत्या तक भी कर सकता है। एकहत्तरवाँ विचार - इसमें 'जीवाभिगमवृत्ति' के आधार पर यह कहा गया है कि विजय आदि विमान में उत्पन्न जीव जघन्यतः एक भव और उत्कृष्टतः चौबीस भवों के पश्चात् मनुष्य-भव प्राप्त कर मुक्त हो जाते हैं। बहत्तरवाँ विचार - इसमें 'जीवाभिगमलघुवृत्ति' के अनुसार बताया गया है कि देव, नारक, यौग्लिक (युगलिया) और मनुष्य के उत्पत्ति-काल में अपर्याप्त होने पर उन्हें उपक्रम आयुष्य का बन्ध होता है। तिहत्तरवाँ विचार - इसमें बताया गया है कि यदि साधु के तिविहार उपवास हो, तो भी वह अन्य साधुओं की बची हुई गोचरी का परिष्ठापन कर सकता है। चौहत्तरवाँ विचार- इसमें आवश्यकसूत्रवृत्ति' आदि ग्रन्थों का प्रमाण देते हुए बताया गया है कि मुनि गजसुकुमार ने जिस दिन दीक्षा ग्रहण की थी, उसी दिन उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया था। पचहत्तरवाँ विचार - इसमें रत्नप्रभा आदि नरकों में कितने भाग में नारक जीव रहते हैं तथा कितने भाग में व्यंतर जीव रहते हैं और कितना भाग खाली रहता है-इसका विचार किया गया है। छिहत्तरवाँ विचार - इसमें 'बृहत्संग्रहणीसूत्र' के अनुसार सिद्ध किया गया है कि पल्योपम के तीन भेद होते हैं - १. उद्धार, २. अद्ध और ३. खित्त। सतहत्तरवाँ विचार - इसमें बताया गया है कि संसार में देवर, पुत्र भाई, पिता, माता आदि कुल अठारह रिश्ते सम्बन्ध होते हैं।
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