Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
११३ अठहत्तरवाँ विचार - इसमें उन्तीस अंकों तक की संख्या का किस प्रकार प्रयोग होता है या उसकी आनयन-पद्धति क्या है-इस पर विचार किया गया है। उन्नासीवाँ विचार - इसमें प्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति' आदि ग्रन्थों के आधार पर बताया गया है कि व्यवहार की रक्षा के लिए पार्श्वस्थ (शिथिलाचारी) साधुओं को आहार-दान करने में दोष नहीं है। अस्सीवाँ विचार- प्राप्त पाण्डुलिपि में प्रस्तुत विचार अनुपलब्ध है। इक्यासीवाँ विचार- इसमें 'पिण्डविशुद्धिबृहत्वृत्ति' में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर बताया गया है कि मुनि गर्भवती स्त्री के हाथ से आठ मास तक भिक्षा ग्रहण कर सकता
बयासीवाँ विचार - इसमें कहा गया है कि अग्रपिण्डदोष का वर्णन 'पिण्डविशुद्धि सूत्रवृत्ति' में प्रतिपादित है। ग्रन्थकार ने अग्रपिण्डदोष का विवेचन भी किया है। तिरासीवाँ विचार - इसमें बताया गया है कि जिन-प्रतिमा की पूजा के समय चौरासी आशातनाओं में जो मुकुट किरीट शिरोमौली उतारने का उल्लेख है, उसका क्या अर्थ है, क्योंकि कड़वा-मतवाले पगड़ी का अर्थ मौली नहीं समझते हैं। समयसुन्दर भी यह मानते हैं कि पगड़ी उतारना आवश्यक नहीं है। चौरासीवाँ विचार - इसमें 'दशवैकालिक-टीका' के आधार पर बताया गया है कि राजीमती ने नेमिनाथ से १०० वर्ष पूर्व ही मोक्ष प्राप्त कर लिया था। पिचासीवाँ विचार- इसमें प्रवचनसारोद्धारसूत्रवृत्ति' के आधार पर बताया गया है कि साधु क्षुधा से पीड़ित व्यक्ति को अपनी भिक्षा में लाया हुआ आहार दे सकता है। छियासीवाँ विचार- इसमें प्रवचनसारोद्धार' नामक ग्रन्थ के आधार पर बताया गया है कि मुनि कंटक आदि से रक्षा करने के लिए चर्म से निर्मित उपानह (जूता, चप्पल आदि) को छोड़कर अन्य वस्त्रों आदि से बनाये गये उपानह को धारण कर सकता है। सतयासीवाँ विचार- इसमें स्थानांगसूत्र' का प्रमाण देते हुए कहा है कि स्त्री पुरुष के साथ सम्भोग न करते हुए भी गर्भ धारण कर सकती है। अट्टासीवाँ विचार - इसमें 'भगवतीसूत्र' के आधार पर बताया गया है कि, लोक में अजीव के ११ भेद होते हैं तथा अलोक में १ भेद होता है। उनयासीवाँ विचार - इसमें 'जीवाभिगमसूत्रवृत्ति' आदि ग्रन्थों के आधार पर बताया गया है कि रत्नप्रभापृथ्वी आदि द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत है। नब्बेवाँ विचार- प्राप्त पाण्डुलिपि में प्रस्तुत विचार अनुपलब्ध है। इक्यानबेवाँ विचार- इसमें बताया गया है कि नरक में भी साता वेदनीय कर्म का उदय होता है। जिस समय तीर्थङ्कर आदि महापुरुषों के जीव का पृथ्वी पर जन्म-कल्याण आदि होता है, उस समय नारकी जीवों को साता वेदनीय का अनुभव होता है।
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