Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
१०९ दो भेद होते हैं- १. जातितः और २. कर्मतः। ग्रन्थकार ने इनके भेदोपभेदों का भी विवेचन किया है। तेईसवाँ विचार- इसमें 'निशीथ-भाष्य' के आधार पर यह कहा गया है कि मुनि केवल स्त्रियों की सभा में प्रवचन नहीं दे सकता है। चौबीसवाँ विचार - इस प्रकरण में वैमानिक देवों को जिन सुखों की उपलब्धि होती है, उनका सविस्तार निर्देश किया गया है। पच्चीसवाँ विचार - इसमें अनुयोग के चार भेद बताए गए हैं- १. धर्मकथानुयोग, २. गणितानुयोग, ३. द्रव्यानुयोग और, ४. चरणकरणानुयोग। इन चार अनुयोगों में निम्नलिखित आगमों का समावेश होता है- प्रथम में ज्ञाताधर्म कथा आदि, द्वितीय में सूर्यप्रज्ञप्ति आदि, तृतीय में पूर्व-साहित्य और चतुर्थ में आचारांग आदि। इसकी पुष्टि के लिए ग्रन्थकार ने 'विचारसार' आदि ग्रन्थों का प्रमाण दिया है। छब्बीसवाँ विचार - इसमें निम्नांकित चार प्रकार के आभरणों का उल्लेख किया गया है- १. ग्रन्थिम, २. वेष्टिम, ३. पूरिम, ४. संघातिम। सत्ताईसवाँ विचार- इसमें जिन-शासन में होने वाले अष्टप्रभावक व्यक्तियों के नाम एवं उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है। वे आठ पुरुष इस प्रकार हैं- १. प्रवचन-कुशल, २. धर्मकथा करने वाला, ३. वादी, ४. निमित्तशास्त्र का ज्ञाता, ५. तपस्वी, ६. विद्यासिद्ध, ७. ऋद्धि-सिद्धियों का स्वामी और ८. कवि (क्रांतदर्शी)। अट्ठाईसवाँ विचार - इसमें मुनि की दस समाचारियों का विवेचन किया गया है। वे इस प्रकार हैं- १. आवश्यकीय, २. नैषेधिक, ३. आपृच्छना, ४. प्रतिपृच्छना, ५. छन्दना, ६. इच्छाकार, ७. मिथ्याकार, ८. प्रतिश्रुत-तथ्यकार, ९. गुरुपूजा-अभ्युत्थान और १०. उपसम्पदा। उन्तीसवाँ विचार- इसमें निम्नलिखित अष्ट माताओं के नाम बताये गये हैं- १. ब्राह्मी, २. महेश्वरी, ३. चैन्द्री, ४. वाराही, ५. वैदर्भी, ६. मताकौमारी, ७. चर्ममुण्डा, ८. कालसंघर्षणी। तीसवाँ विचार - इसमें यह बताया गया है कि कलियुग का मान ३२ हजार, द्वापर युग का मान २८ लाख, त्रेतायुग का मान ४२ लाख ९६ हजार और कृतयुग का मान ५७ लाख २८ हजार वर्ष है। इकतीसवाँ विचार- इसमें यह बताया गया है कि घृतादि के स्थापना का काल एक देश पूर्व कोटि है। बत्तीसवाँ विचार - इसमें यह बताया गया है कि गच्छवासी साधुओं के आहार के विषय में 'पश्चात् कर्मदोष' नहीं होता है। तैंतीसवाँ विचार- इसमें भाषा के चार भेद बताते हुए कहा गया है कि विशेष कारणों
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