Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व तत्र ग्रन्थान्तर के क्लिष्ट उद्धरणों की ग्रन्थकार ने स्वयं व्याख्या कर उन्हें सुबोध बनाने की चेष्टा की है, जिससे पाठक को सरलता से विषय का बोध हो सके ।
प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेक आगमिक ग्रन्थों के उद्धरण दिये गये हैं, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि समयसुन्दर का आगमिक ज्ञान अत्यन्त व्यापक और उत्कृष्ट था।
इस ग्रन्थ की रचना मेड़ता नगर में वि० सं० १६७२, पौष कृष्णा १० को की गई थी। ऐसा ग्रन्थकार ने स्वयं ग्रन्थान्त में दी गई प्रशस्ति में लिखा हैविक्रमसंवति लोचनमुनिदर्शन- कुमुदबान्धवप्रमिते ।
श्रीपार्श्व जन्मदिवसे पुरे श्रीमेडतानगरे ||
इसके अतिरिक्त प्रशस्ति-पद्यों से यह स्पष्ट है कि जिस समय इस ग्रन्थ की रचना हुई थी, उस समय देश में घोर दुर्भिक्ष और महामारी का भयंकर प्रकोप था। लोग प्राण बचाने और जीविकोपार्जन के लिए देश छोड़कर इधर-उधर भाग रहे थे । महार्घता अपनी चरम सीमा पर थी। समाज में मान-सम्मान का कोई प्रश्न नहीं रह गया था । इस प्रकार अत्यन्त विषम परिस्थिति में भी इस ग्रन्थ के निर्माण से ग्रन्थकार का विलक्षण धैर्य और साहित्य-सेवा की उत्कट भावना सिद्ध होती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में जिन १०० पश्नों का आगमिक उद्धरणों द्वारा सम्यक् समाधान किया गया है, जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
(१) इसमें 'वसुदेव हिण्डी' के आधार पर यह सिद्ध किया गया है कि श्रीकृष्ण तृतीय पृथ्वी का आयुष्य पूर्णकर एक मनुष्य-भव और एक देव-भव करके चतुर्थ भव में 'अमम' नाम के तीर्थङ्कर होंगे।
(२) इस प्रकरण में क्षायिक सम्यक्त्व के दो विभाग किये गये हैं- शुद्ध क्षायिक सम्यक्त्व और अशुद्ध क्षायिक सम्यक्त्व |
(३) प्रस्तुत प्रकरण में देवताओं के एक नाटक का काल - प्रमाण ४००० वर्ष बताया गया है । ग्रन्थकार ने इस तथ्य की पुष्टि के लिए 'श्रीपार्श्वनाथदशगणधरसम्बन्ध' ग्रन्थ का उद्धरण दिया है।
(४) इसमें हेमचन्द्राचार्य कृत 'महावीरचरित्रम्' के आधार पर यह कहा गया है कि जामालि १५ भव करने के पश्चात् मुक्ति को प्राप्त करेंगे ।
(५) प्रस्तुत अधिकार में तिलकसूरि-रचित ' योग-विधिसूत्र' के अनुसार यह बताया गया है कि ज्ञान - पंचमी तप का उपवास विस्मृति आदि के कारण पंचमी को न कर सकने पर उसके आगामी दिन उपवास करने से पंचमी व्रत भंग नहीं होता है ।
(६) इस प्रकरण में यह सिद्ध किया गया है कि अनशन के समय साधु के लिए रात्रि में दीपक का प्रकाश करना उचित है। इसकी पुष्टि के लिए ग्रन्थकार ने हरिभद्रसूरि कृत 'आवश्यक बृहद्वृत्ति' का प्रमाण दिया है ।
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