Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रमाण के लिए 'नन्दीसूत्र' और 'आवश्यक बृहवृत्ति' के उद्धरण दिए हैं। (१९) इसमें 'सूत्रकृतांग-सूत्र' आदि ग्रन्थों के उद्धरण देकर यह बताया गया है कि यौग्लिकों (युगलियों) का सामान्य आयुष्य ३ पल्योपम होता है, किन्तु अपवादवश अन्तमुहूर्त भी हो सकता है। (२०) इस सन्दर्भ में जिनकुशलसूरि रचित 'चैत्यवन्दन-कुलक' के आधार पर यह कहा गया है कि पाक्षिक, पर्युषण आदि पर्यों में अनायतन चैत्य में भी अर्हदबिम्ब को वन्दनार्थ जाना उचित है। (२१) प्रस्तुत अधिकार में 'आवश्यक बृहद्वृत्ति' का प्रमाण देते हुए लिखा गया है कि तीर्थङ्कर चतुर्थ प्रहर में भी देशना' देते हैं। (२२) इस प्रकरण में भी उपर्युक्त ग्रन्थ का ही प्रमाण देते हुए स्पष्ट किया गया है कि साधुओं के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी अनुकम्पा-पूर्वक दान देना दोषयुक्त नहीं है, किन्तु उन्हें धर्मबुद्धि से दिया गया दान अवश्य ही दोषयुक्त है। (२३) इस अधिकार में प्रवचनसारोद्धारबृहद्वृत्ति' के आधार पर यह कहा गया है कि जो पार्श्वस्थ आंशिक रूप में भी श्रमणत्व का पालन करते हैं, उन्हें नमन अवश्य करना चाहिये। (२४) इसमें संदेहदोलावली बृहद्वृत्ति' के आधार पर यह बताया है कि साधु द्वारा लाया हुआ प्रासुक जल जब कुछ समय बाद गलित हो जाता है, तो उसे उसी गृह में लौटा दे, जहाँ से उसे लाया हो और उस गृहस्थ को चाहिये कि उस जल को जिस जलाशय से लाया हो, उसी में विसर्जन कर दे। (२५) इस प्रकरण में भी उपर्युक्त ग्रन्थ का प्रमाण देते हुए सिद्ध किया गया है कि दिगम्बर-मन्दिर अनायतन होने से अवन्द्य है। (२६) इसमें आवश्यक बृहद्वृत्ति' के आधार पर यह विवेचन किया गया है कि तीर्थङ्कर प्रात:काल सम्पूर्ण 'पौरुषी' में धर्म का प्रतिपादन करते हैं। (२७) प्रस्तुत प्रकरण में भगवतीसूत्रवृत्ति' का प्रमाण देते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि श्रावक मनसा-वाचा-कर्मणा- इन तीनों योगों से और कृत, कारित, अनुमोदित --- इन तीनों कारणों से सामान्यतया प्रत्याख्यान नहीं करता है, किन्तु विशेष प्रसंगों में जैसे - काकमांस -भक्षण, राज-अन्तःपुर का सेवन आदि का नवकोटि से प्रत्याख्यान कर सकता है। (२८) इसमें 'ज्ञाताधर्मकथासूत्र' के अनुसार यह कहा गया है कि तीर्थङ्कर दीक्षा-ग्रहण करने से पूर्व १ वर्ष तक प्रात:काल से दो प्रहर तक दान देते हैं। (२९) इस सन्दर्भ में 'ओघनियुक्तिसूत्रवृत्ति के आधार पर यह स्पष्ट किया है कि रात्रि में भी मुनि विहार कर सकता है।
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