Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त
'आलोयणा-छत्तीसी तथा पुंजारन ऋषि रास'२ से भी यही संकेत प्राप्त होता है कि कवि वि०सं० १६९८ में भी अहमदाबाद में ही स्थिर रहे। कवि की रचनाओं में 'तीर्थभास-छत्तीसी' तथा 'केशी-प्रदेशी-प्रबन्ध' आदि रचनाएँ भी कवि ने वि० सं० १६९९ में अहमदाबाद में ही रची थीं। वि० सं० १७०० में उन्होंने 'द्रौपदी-चौपाई' की रचना की थी। इन सर्व कृतियों से विदित होता है कि वृद्धावस्था में कवि ने अपना शेष जीवन अहमदाबाद में ही व्यतीत किया था। कवि का स्वर्गवास भी अहमदाबाद में हाजा पटेल की पोल के खरतरगच्छ उपाश्रय में हुआ था। कवि राजसोम इनकी मृत्यु का उल्लेख करते हुए लिखते हैं
अणसण करी अणगार, संवत सत्तर हो सय बीड़ोतरे।
अहमदाबाद मझार, परलोक पहुंता हो चैत सुदि तेरसे॥३
उपर्युक्त उल्लेख से ज्ञात होता है कि कवि ने मृत्यु से पूर्व संलेखना-व्रत ग्रहण किया था। जैन-परम्परा के अनुसार मृत्यु को सन्निकट जानकर शरीर के प्रति ममत्व का त्यागकर देह-पोषण के प्रयत्नों को छोड़ देना तथा अनशन-व्रत पूर्वक निष्कामभाव से मृत्यु का वरण कर लेना – संलेखना-व्रत कहा जाता है। देह-भाव से ऊपर उठकर देहातीत अवस्था में पहुँचना तथा विकारों से मुक्त होने का प्रयत्न करना संथारा या संलेखना है। उत्तराध्ययन में मृत्यु के दो रूप वर्णित हैं- (१) सकाम-मरण अर्थात् स्वेच्छामरण या निर्भयतापूर्वक मृत्युवरण और (२) अकाम-मरण अर्थात् अनिच्छापूर्वक या भयपूर्वक मृत्यु से ग्रसित होना। पहले को पण्डितमरण या समाधिमरण कहा जाता है और दूसरे को बाल (अज्ञानी) मरण अथवा असमाधिमरण। प्राणों का विसर्जन संलेखना में भी किया जाता है और आत्महत्या में भी। अन्तर इतना ही है कि आत्म-हत्या क्षणिकआवेश में की जाती है, जबकि संखेलना में समाधिपूर्वक स्व-स्वरूप में स्थित होते हुए निष्काम भाव से देह का विसर्जन किया जाता है। इसीलिए डा० सागरमल जैन के
अनुसार स्वेच्छा-मरण तो मृत्यु की वह कला है, जिसमें न केवल जीवन ही सार्थक होता है वरन् मरण भी सार्थक हो जाता है। वस्तुतः समाधि-मरण का व्रत हमारे आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए ही ग्रहण किया जाता है और इसलिये पूर्णत: नैतिक भी है। कवि राजसोम के उल्लेखानुसार वि० सं० १७०३ की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को कवि का लगभग नब्बे वर्ष की आयु में समाधि-मरण हुआ। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ५४७ २. वही, पृष्ठ ५५८ ३. नलदवदंती रास, परिशिष्ट ई, पृष्ठ १३४ ४. द्रष्टव्य - उत्तराध्ययन (५.२-३) ५. जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, पृष्ठ ४४५
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