Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text
________________
७७
समयसुन्दर की रचनाएँ
यद्यपि 'मंगलवाद' नव्यन्याय का विषय है और इसका विवेचन भी पारिभाषिक भाषा में ही अन्य ग्रन्थों में किया गया है, किन्तु प्रस्तुत ग्रंथकार ने सामान्य जनता के लाभ की दृष्टि से इस दुरूह विषय को सरल भाषा में प्रस्तुत कर लोकोपकार किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के अन्त में प्राप्त उल्लेखों से ज्ञात होता है कि वि० सं० १६५३, आषाढ़ शुक्ला १० को इला-दुर्ग में यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ था। ग्रन्थकार ने यह ग्रन्थ अपने शिष्य पं० हर्षकुशल के अध्ययन के लिए निबद्ध किया था। जैसा कि ग्रन्थकार ने स्वयं लिखा है -
कृता लिखिता च संवत् १६५३ वर्षे आषाढ़ सुदि १० दिने श्रीइलादुर्गे चातुर्मासस्थितेन श्रीयुगप्रधान-श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यमुख्यपण्डितसकलचन्द्रगणिस्तच्छिष्य वा० समयसुन्दरगणिना पं० हर्षनन्दनमुनि-कुते॥
प्रस्तुत ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है। ग्रन्थ अप्रकाशित है। १.४ चातुर्मासिक व्याख्यान
प्रस्तुत ग्रन्थ का रचना-काल वि० सं० १६६५, चैत्र शुक्ला १० और रचनास्थान अमरसर है। ग्रन्थकार स्वयं उक्त तथ्य को सूचित करते हैं -
श्रीमद्विक्रमसंवति, बाणरसभ्रमरचरणशशिसंख्ये।
श्रीअमरसरसि-नगरे, चैत्रदशाम्बां च शुक्लायाम्॥ इस ग्रन्थ में सामायिक, आवश्यक (प्रतिक्रमण), पौषध, देवार्चन, स्नात्रविलेपन, ब्रह्म-क्रिया (ब्रह्मचर्य), दान और तप - इन नौ विषयों का सविस्तार विवेचन और विश्लेषण किया गया है। ग्रन्थकार ने इन सभी विषयों की सुन्दर व्याख्या की है। इनके भेद-प्रभेद, स्वरूप, फल आदि का भी प्रतिपादन किया गया है। अन्त में विषय की स्पष्टता एवं शीघ्रबोधगम्यता के लिए तत्-तविषयक एक-एक दृष्टान्त भी दिये गये हैं। समयसुन्दर ने केवल एक पद्य में ही लगभग सभी चातुर्मासिक कृत्यों का संक्षिप्त विवरण दे दिया है -
सामायिकावश्यक-पौषधानि, देवार्चन-स्नात्रविलेपनानि। ब्रह्मक्रियादानतपोमुखानि, भव्याश्चतुर्मासिकमंडनानि॥
इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर; पूरणचन्द नाहर संग्रहालय, कोलकाता; जैन श्वे० पंचायती बड़ा मंदिर, वाराणसी आदि अनेक ज्ञानभण्डारों से प्राप्त हुई हैं। केवल अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर से इसकी ७ प्रतियाँ उपलब्ध हुई हैं। नाहटा-बन्धुओं के अनुसार यह ग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है, किन्तु हमें न तो इसकी प्रकाशित प्रति प्राप्त हो सकी है और न ही इसके प्रकाशक के बारे में कोई उल्लेखनीय जानकारी मिल सकी है। १. द्रष्टव्य -- सीताराम -चौपाई, पृष्ठ ५३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org