Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text
________________
८०
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व इस प्रकार कालक साहिपुत्र के द्वारा दरबार में पहुँच गये। (ऐसी ही घटना महाभारत, परिशिष्ट, पर्व सर्ग ८ में भी वर्णित है।)
कालक ने साहि को अपने वश में कर लिया। एक बार साहानुसाहि या साखीराज का एक दूत आया और उसने एक पत्र दिया, जिसे पढ़कर साहि का शरीर काला पड़ गया। कालक द्वारा कारण पूछने पर साहि बोला कि यह हमारे स्वामी की रुष्टता का प्रतीक है। हमारा स्वामी जिससे रुष्ट होता है, उसके पास उसी के नाम की मुद्रावाली कटार भेजता है, जिससे उसे आत्महत्या करनी पड़ती है। यदि उसकी इस आज्ञा का पालन न किया जाय, तो वह उसके सारे परिवार को नष्ट कर डालता है। तब सूरि ने पूछा - क्या वह तुम्हारे से ही रूठा है या किसी और से भी? साहि बोलाभगवन् ! मेरे अतिरिक्त ९५ अन्य राजाओं से भी, क्योंकि '९६' का अंक इस कटार पर दिखाई देता है। सूरि ने समाधान खोजते हुए बताया कि यदि ऐसी बात है, तो तुम आत्मघात मत करो और अपने दूत भेजकर ९५ ही राजाओं को कहला दो कि हम हिन्दुक को चलेंगे; वहाँ गर्दभिल्ल राजा को जीतकर, वहाँ शासन करेंगे।
९६ राजा दल-बल सहित एकत्रित हुए और सभी हिन्दुक देश की ओर रवाना हुए। सुराष्ट्रदेश में पहुँचे, तब तक वर्षाकाल आ गया। मार्ग दुर्गम होने से वे वहीं ठहर गए। वर्षावास में सभी राजाओं का धन-धान्यादि समाप्त हो गया, तो कालक ने शासनदेव की स्तुति की और उनसे प्राप्त वासक्षेप को उन्होंने ईटों पर डाल दिया। ईटें स्वर्णमयी हो गईं, जिससे राजाओं को सारी ऋद्धि-समृद्धि पुनः प्राप्त हो गई।
समस्त लोग मालवदेश पहुँचे और उज्जयनी पर चढ़ाई कर दी। परस्पर युद्ध हुआ और गर्दभिल्ल की सेना तितर-बितर हो गई। कालक को यह ज्ञात था कि आज कृष्णाष्टमी है, अत: गर्दभिल्ल गर्दभी-विद्या का स्मरण करेगा। सूरि ने सैनिकों से अट्टालिकाओं पर दिखाया कि कहीं कोई गर्दभी तो दृष्टिगत नहीं हो रही है? सैनिकों ने गर्दभी होने की बात बतायी, तो कालक ने सभी राजाओं को निर्देश दिया कि तुम मात्र १०८ शब्दवेधियों को मेरे पास छोड़कर यहाँ से पाँच कोश दूर चले जाओ। कालक ने शब्दवेधियों को आदेश दिया कि वह गर्दभी कुछ शब्दोच्चारण करने के लिए जैसे ही अपना मुख खोले, उसका मुख एक साथ तीरों से बींध डालना। यही हुआ, गर्दभी कुछ बोल न सकी और व्यथा के मारे वह अपनी शक्ति भी सम्भाल न सकी और वहाँ से भागने लगी। गर्दभिल्ल पर कुपित हो जाने से उसने उस पर विष्ठा कर दी। गर्दभी-विद्या के अभाव में गर्दभिल्ल की शक्ति भी नष्टप्राय हो गयी।
अन्त में गर्दभिल्ल को पकड़ लिया गया। कालक ने उसे धिक्कारा और पुनः प्रतिबोध दिया, परन्तु कूर्मकाय पर किये गये प्रहार निरर्थक होते हैं, तथापि कालक के हृदय में करुणा जागृत हो गयी। उन्होंने उसे मुक्त कर दिया तथा शीघ्र ही यह देश छोड़कर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org