Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त
साक्ष्यों के आधार पर उनके शिष्यों की पुष्ट जानकारी उपलब्ध होती है - १८. १ हर्षनन्दन - ये ' हर्षनन्दन' के नाम से प्रसिद्ध हैं । इन्होंने जैनधर्म के प्रचार में प्रबल पुरुषार्थ किया और अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का निर्माण कर जैन - साहित्य का गौरव बढ़ाया। इनकी कृतियों में ऋषिमण्डल - टीका, मध्याह्न व्याख्यान - पद्धति, उत्तराध्ययनसूत्र - वृत्ति तथा स्थानांगवृत्तितगत गाथावृत्ति आदि उल्लेखनीय हैं। आदिनाथ- व्याख्यान, पार्श्वनेमि-चरित्र, ऋषिमण्डल - बालावबोध, आचार - दिनकर - लेखन - प्रशस्ति, उद्यम-कर्मसंवाद आदि भी अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं।
कवि समयसुन्दर ने वादी हर्षनन्दन का अभिनन्दन किया है - प्रक्रिया हेमभाष्यादि - पाठकैश्च विशोधिता । हर्षनन्दनवादीन्द्रैः, चिन्तामणि विशारदै ॥ १
हर्षनन्दन ने महोपाध्याय समयसुन्दर प्रणीत कल्पलता, समाचारी - शतक, सप्तस्मरण - टीका और द्रौपदी - चौपाई की रचना में सहयोग भी दिया था ।
वादी हर्षनन्दन के जयकीर्ति जैसे ज्योतिष - विशारद और दयाविजय जैसे बहुश्रुत विद्वान् शिष्य थे। जयकीर्त्ति ने पृथ्वीराजवेलि-बालावबोध, षडावश्यक बालावबोध आदि ग्रन्थों का प्रणयन किया था। जयकीर्ति के शिष्य राजसोम और प्रशिष्य समयनिधान ने भी पर्याप्त साहित्य लिखा है ।
१८. २ सहजविमल - इनके सन्दर्भ में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है। ये कवि के शिष्य थे। कवि ने इनके और मेघविजय गणि- दोनों के लिए नवतत्त्व - टीका, रघुवंशटीका एवं जयतिहुअण- स्तोत्र - टीका बनाई थीं।
१८.३ मेघविजय - ये साधनानिष्ठ साधु थे । गुरु के प्रति भी पूर्ण श्रद्धा रखते थे । फलस्वरूप इन्होंने दुर्भिक्षकाल में भी अपने गुरु का साथ नहीं छोड़ा। प्रतिकूल स्थितियों में गुरु का साथ न छोड़ना, यह इनकी आचार और विचार-निष्ठता की द्योतक हैं। इसीलिए कवि समयसुन्दर ने हन्हें साधुवाद दिया है -
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मुनि मेघविजय - शिष्यो, गुरुभक्तो नित्यपार्श्ववर्ती च । तस्मै पाठनपूर्वं दत्ता प्रतिरेषा पठतु मुद्रा ।
मेघविजय के हर्षकुशल जैसे प्रखर वैदुष्य शिष्य थे । हर्षकुशल ने बीसी आदि रचनाओं के अतिरिक्त कवि की रचनाओं में भी संशोधन आदि की सहायता दी थी, जिसका निर्देश कवि ने स्वयं किया है.
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वाचक हर्षनन्दन वलि, हर्षकुशलइ सानिधि कीइ रे । लिखण सोधन सहाय थकी, तिण तुरत पूरी करी दीधी रे ॥३ १. कल्पलता, प्रशस्ति (१२)
२. विशेषशतक, प्रशस्ति ( ६ )
३. द्रौपदी - चौपाई (३.७.६)
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