Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
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मध्यकालीन भारतीय-साहित्य को महोपाध्याय समयसुन्दर की महत्त्वपूर्ण देन है। वे संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी आदि विविध भाषाओं के वेत्ता थे। उन्होंने गद्य और पद्य - इन दोनों में रचना की है। उनकी रचनाएँ विविध विधाओं से सम्बद्ध होने के कारण बहुविध हैं। साहित्य के सम्पूर्ण इतिहास में समयसुन्दर जैसे रचनाकार कम ही हैं, जिनकी इतने अधिक विविध विषयों से सम्बन्धित रचनाएँ उपलब्ध होती हों।
समयसुन्दर के समग्र साहित्य के पर्यवेक्षण से ज्ञात होता है कि उनका साहित्य आध्यात्मिक, पाण्डित्यपूर्ण और जनरुचि के अनुकूल - इन तीनों स्तरों पर उपलब्ध है। उनके साहित्य में दर्शन है, इतिहास है, भक्ति है, काव्य-कौशल है। सचमुच, उनका साहित्य बहुविध एवं बहुगुण-सम्पन्न है।
समयसुन्दर ने एक ओर कालिदास तथा केशवदास की तरह अपनी रचनाओं में पाण्डित्य का प्रदर्शन किया है, तो दूसरी ओर भक्त बनकर कवयित्री मीराबाई की भाँति भावपूर्ण रचनाएँ कीं। तीसरी ओर उन्होंने एक उपदेशक बनकर सहृदय जनसामान्य को धार्मिकता तथा नैतिकता की प्रेरणा दी है।
महोपाध्याय समयसुन्दर की रचनाओं को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हम छः भागों में विभाजित कर सकते हैं -
1. मौलिक संस्कृत रचनाएँ 2. संस्कृत टीकाएँ 3. संग्रह-ग्रन्थ
___ 4. भाषा-कृतियाँ 5. बालावबोध या भाषा-टीका 6. प्रकीर्णक रचनाएँ।
उपर्युक्त शीर्षकान्तर्गत समयसुन्दर के सम्पूर्ण साहित्य का परिचयात्मक अध्ययन निम्नानुसार है -
१. मौलिक संस्कृत रचनाएँ महोपाध्याय समयसुन्दर संस्कृत-जगत् में विशिष्ट स्थान रखते हैं। वे संस्कृत के उद्भट विद्वान थे। इन्होंने प्रचुर संस्कृत-साहित्य का सर्जन किया। इनकी कतिपय रचनाएँ तो सार्वकालिक, सार्वदेशिक एवं विश्वजनीन रही हैं। संस्कृत-रचनाओं में उनकी अष्टलक्षी' नामक कृति संसार के सम्पूर्ण साहित्य में बेजोड़ एवं अनुपम है। इसी तरह उनका शतकसाहित्य भी अपने-आप में उच्च कोटि का है। संक्षेप में, समयसुन्दर की मौलिक संस्कृत रचनाएँ इस प्रकार हैं - १.१ भावशतक
१.२ अष्टलक्षी
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