Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text
________________
६२
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सेवा के लिए महोपाध्याय विनयसागर का अभिमत है कि कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य के पश्चात् प्रत्येक विषयों में मौलिक सर्जनकार एवं टीकाकार के रूप में विपुल साहित्य का निर्माता अन्य कोई शायद ही हुआ है।
कवि ने संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी, हिन्दी, गुजराती, सिन्धी आदि विविध भाषाओं में अनेक कृतियों का सर्जन किया है। उनकी साहित्य-सृष्टि में व्याकरण, काव्यलक्षण, टीका, न्याय, छन्द, सिद्धान्तचर्चा, ज्योतिष, शास्त्र - चर्चा, संवाद, रासचौपाई, इतिहास, प्रबन्ध, काव्य, बालावबोध, अनेकार्थ साहित्य, स्तवन, चौबीसी - छत्तीसी, गीत प्रभृति समस्त काव्यांग उपलब्ध होते हैं। उनकी कृतियों का विस्तृत विवेचन हम अगले अध्याय में करने जा रहे हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं कवि एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति थे, जिन्हें अपने युग में एक प्रखर वक्ता, साहित्यकार और निष्ठावान् साधक के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था । उनके व्यक्तित्व की महत्ता इसी से सिद्ध हो जाती है कि उनके समसामयिक कविराज ऋषभदास ने वि० सं० १६७० में रचित 'कुमार पाल - रास' में समयसुन्दर की ख्याति को स्पष्ट हुए कहा है
सुसाधु हंस समयोसुरचन्द, शीतलवचन जिम शारदचन्द । एकवि मोटा बुद्धि विशाल ते आगलि हूँ मूरख बाल ॥
१७. अन्तिम जीवन एवं समाधि-मरण
देश के विविध क्षेत्रों का पर्यटन करते हुए कवि समयसुन्दर वि० सं० १६८६ में अहमदाबाद पहुँचे, ऐसा दण्डकवृत्ति और धनदत्त - चौपाई के आधार पर ज्ञात होता है । ऐरवत क्षेत्र के चौबीस अरिहन्त तीर्थंङ्करों के गीत और साधु- वन्दना में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार वि० सं० १६९७ में भी वे अहमदाबाद ही रहे। इसी वर्ष फाल्गुन शुक्ला एकादशी को नाथा संखवाल की पत्नी धन्नादे ने परिग्रह-परिमाण व्रत अंगीकार किया था। कवि की हस्तलिखित पाण्डुलिपि में उपर्युक्त घटना का निम्नलिखित उल्लेख मिलता है -
सं० १६९७ वर्षे फागुण सुदि ११ गुरुवारे श्री अहमदाबाद नगरे श्री खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनसागरसूरि - विजयराज्ये संखवाल गोत्रे सं० नाथा भार्या सुश्राविका पुण्यप्रभाविका श्रा० धन्नादे सा० करमसी महोपाध्याय श्री समयसुन्दर पार्श्वेइच्छा-परिमाण कीधा। श्रीरस्तु। कल्याणमस्तु ॥३
१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुन्दर, पृष्ठ १
२. वही, पृष्ठ २९
३. धन्नादे व्रत ग्रहण (पत्र १-२ ), ( अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्रति उपलब्ध )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org