Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त
वीर सुणउ मोरी वीनती, कर जोड़ी हो कहुँ मननी बात । बालक नी परि वीनवुं, मोरा सामी हो तुम त्रिभुवन तात ॥ तुम दरिसण विन हुं भम्यउ, भव माहि हो सामी समुद्र मझार । दुख अनंता मई सह्या, ते कहितां हो किम आवई पार ॥ पर उपगारी तूं प्रभु, दुःख भंजइ हो जग दीन दयाल । तिण तोरउ चरणें हुँ आवियउ, सामी मुझ नई हो निज नयण निहाल ॥ अपराधी पिण ऊधर्या, तंइ कीधी हो करुणा मोरा साम । हूँ तो परम भक्त ताहरउ, तिण तारउ हो नवि ढील नो काम ॥ सूधउ संजम नवि पलइ, नहिं तेहवउ हो मुज दरसण नाण । पण आधार छइ एतलउ, एक तोरउ हो धरुं निश्चल ध्यान ॥ मेह महीतल वरसतउ, नवि जोवइ हो सम विसमी ठाम । गिरुया सहिजे गुण करइ, सामी सारउ हो मोरा वांछित काम ॥ तुम नाम सुख संपदा, तुम नाम हो दुःख जावइ दूर । तुम नामं वंछित फलइ, तुम नामई हो मुझ आणंद पूर ॥
जैनधर्म में भक्ति-भावना के आधार पर तीर्थङ्कर नामकर्म का बन्ध स्वीकार
किया गया है । भक्तकवि समयसुन्दर इसीलिए भावविह्वल होकर भक्ति की तन्मयता में हर
जन्म में प्रभु-भक्ति चाहते हैं -
तुम दरसण हो मुझ आणंद पूर कि, जिम जगि चंद चकोरड़ा। तुम दरसण हो मुझ मन उछरंग कि, मेह आगम जिम मोरड़ा ॥ तुम नामइ हो मारा पाप पुलाइ कि, जिम दिन उगइ चोरड़ा। तुम नामइ हो सुख संपति थाय कि, मन वंछित फलइ मोरड़ा ॥ हूँ मांगू हो हिव अविहड़ प्रेम कि, नित-नित करुय निहोरड़ा । मुझ देज्यो हो सामी भव-भव सेव कि, चरण न छोडूं तोहरा ॥
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तूं गति तूं मति तूं धणी जी, तूं साहिब तूं देव । आण धरूं सिर ताहरी जी, भव-भव ताहरी सेव ॥ ३
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समयसुन्दर ने भगवद् स्वरूप को तो मुख्यतः भक्ति का आधार स्वीकार किया
ही है, साथ ही साथ बाल्यक्रीड़ा को भी भक्ति का एक अंग माना है। इस सम्बन्ध में कुछ
पद्य अवलोकनीय हैं
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९. वही, महावीर - जिन - विज्ञप्ति-स्तवन (१ - ४, १६-१८), पृष्ठ २०२--४
२. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री अमरसर-मंडन - शीतलनाथ - बृहत्स्तवन, पृष्ठ ९९-१०० ३. वही, आलोयणागर्भित श्री शत्रुंजयमण्डन आदिनाथ स्तवन पृष्ठ ७३
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