Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व भगति गुण लवलेश भाखुं, सुविध जिन सुखकार । समयसुन्दर कहत हमकुं, स्वामी तुम आधार ॥ १
समयसुन्दर ने न केवल जिनेन्द्र के प्रति ही भक्ति भाव प्रकट किये हैं, अपितु गुरुजनों एवं आचार्यों के प्रति भी उनके मन में अगाध भक्ति एवं श्रद्धा थी। अपने गुरुओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने स्वतन्त्र गीतों की रचना भी की। जिनदत्तसूरि, जिनकुशलसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनसिंहसूरि, जिनराजसूरि आदि के प्रति कवि की अटूट आस्था विभिन्न गीतों में व्यंजित हुई है। वे कहते हैं
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मुझ मन मोह्यों रे गुरुजी, तुम्ह गुणे जिम बाबीहड़ मेहो जी । मधुकर मोह्यो रे सुन्दर मालती, चन्द चकोर सनेहो जी ॥ मान सरोवर मोह्यो हंसलउ, कोयल जिम सहकारो जी ॥ गुरु चरणे रंग लागउ माहरउ, जेहवउ चोल मजीठो जी । दूर थकी पिण नवि वीसरइ, वचन अमीरस मीठो जी ॥ सकल सोभागी सह गुरु राजयिउ, श्री जिनसिंघसूरिसो जी, समयसुन्दर कहइ गुरु-गुण गावतां, पूजइ मनइ जगीसो जी ॥ २ कवि ने अपने गुरु के दर्शन, नाम- जाप, वंदन, ध्यान आदि सभी को सुख प्रदायक कहा है।
गुरु के दरस अखियां मोहि तरसइ ।
नाम जपत रसना सुख पावत, सुजस सुणत ही श्रवण सरसई ॥ प्रणमत होत सफल सहगुरु कुं, ध्यान धरत मेरउ चितु हरसइ । सुगुरु वंदण कुं चलत ही चरण युग, पतियां लिखत ही कर फरसइ ॥ ३
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जिण दीठां मन ऊलसइ रे, नयणे अमिय झरंति ।
ते गुरुणा गुण गांवता रे, वंछित काज सरंति ॥ ४
ठीक कबीर आदि के समान ही इन्होंने भी गुरु के महत्त्व का विवेचन किया हैगुरु दीवउ गुरु चन्द्रमा रे, गुरु देखावइ बाट । गुरु उपगारी गुरु बड़ा रे, गुरु उतारइ घाट ||
१. वही, सुविधि जिनस्तवन, पृष्ठ ७
२. वही, चौमासा - गीतम्, पृष्ठ ३८७-३८८
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३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ३९७-३९८
४. वही, श्री जिनचन्द्रसूरि चन्द्राउला गीतम्, पृष्ठ ३६९ ५. वही, श्री जिनसिंहसूरि - गीतानि, पृष्ठ ३८७
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