Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व मिट्ठा बे मेवा तैं कुं देवा, आउ इकट्ठे जेमण जेमां। लावां खूब चमेल ऋषभ जी, आउ असाड़ा कोल॥ कसबी चीरा पै बांधूं तेरे, पहिरण चोला मोहन मेरे। कमर पिछेवड़ा लाल ऋषभ जी, आउ असाड़ा कोल॥ काने केवटिया पैरे कड़िया, हाथे बंगा जवहर जड़िया। गल मोतियन की माल ऋषभ जी, आउ असाड़ा कोल॥ बांगा लाटू चकेरी चंगी, अजब उस्तादां बहिकर रंगी। आंगण असाड़े खेल ऋषभ जी, आउ असाड़ा कोल॥ नयन वे तैंडे कज्जल पावां, मन भावडदां तिलक लगावां। रूढ़ड़ा कैदे कोल ऋषभ जी, आउ असाड़ा कोल॥ आवो मेरे बेटा दूध पिलावां, वही बेड़ा गोदी में सुख पावां।
मन्न असाड़ा बोल ऋषभ जी, आउ असाड़ा कोल ॥१
अनुराग को भक्ति की उत्तम मनोदशा माना जाता है। समयसुन्दर भी जीवन के अनुराग-पक्ष को सर्वोत्तम ढंग से स्वीकार करते हैं। उन्होंने राजीमति के द्वारा नेमिनाथ के प्रति अपने अनुराग को ३५ गीतों में प्रकट किया है। इन गीतों में सूरदास एवं मीरा की भक्ति-शैली के दर्शन होते हैं। सूरदास प्रभु', 'मीरा के प्रभु' की भांति समयसुन्दर प्रभु' के प्रयोग भी मिलते हैं।
कवि ने अपनी आराधना में लोकमान्य सभी भगवत् रूपों एवं नामों को शालीनता के साथ समाहित किया है। उनका कहना है कि यद्यपि लोग भेद-भाव के कारण उस परम परमात्मा को अलग-अलग नामों से सम्बोधित करते हैं, लेकिन वास्तव में उन सबका उसमें अन्तर्भाव हो जाता है -
एक तुंही तुंही, नाम जुदा मूहि मूहि । बाबा आदिम तुंही तुंही, अनादि मते तुंही तंही। परब्रह्म ते तुंही तुंही, पुरुषोत्तम ते तुंही तुंही। ईसर देव ते तुंही तुंही, परमेसर ते तुंही तुंही। राम नाम ते तुंही तुंही, वही नाम ते तुंही तुंही। सांई पण ते तुंही तुंही, गोसांइ ते तुंही तुंही। बिल्ला इल्ला तुंही तुंही, आप एकल्ला तुंही तुंही। जती जोगी ते तुंही तुंही भुगत भोगी ते तुंही तुंही।
१. वही, सिन्धीभाषामय श्री आदिजिनस्तवनम्, पृष्ठ ९१ २. द्रष्टव्य - वही, पृष्ठ ११०-१४२ ३. द्रष्टव्य - वही, नेमिनाथ सवैया (१८), पृष्ठ १३७
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